________________ भ्वादयः] सिद्धहैमबृहत्प्रक्रिया. 525 अबोधिष्ट / खनूग अवदारणे // 28 // गमहनेत्यल्लुकि चख्नतुः। चख्ने / दानी अवखण्डने / // 29 // आर्जवे दीदांसति / दीदांसते / शानी तेजने // 30 // निशाने शीशांसति / शीशांसते / अर्थान्तरे तु सनोऽभावे प्रत्ययान्तराण्यपि / शपी आक्रोशे // 31 // शपति / शपते / अशाप्सीत् / अशप्त / शशाप / शेपे / चायग पूजानिशामनयोः // 32 // व्ययी गतौ // 33 // अव्ययीत् / अव्ययिष्ट / अली भूषणपर्याप्तिवारणेषु // 44 // धावूग गतिशुद्धयोः // 38 // चीग ऋषीवत् // 36 // अनृदिदयमित्येके / / दाग दाने // 37 // ऋषी आदानसंवरणयोः // 38 // भेषग् भये // 39 // भ्रषग चलने च // 40 // पषी बाधनस्पर्शनशोः // 41 // शान्तोऽयमित्येके। लषी कान्तौ // 42 // कान्तिरिच्छा / भ्राशभ्लाशेति वा श्ये / अभिलष्यति / अभिलषति / अभिलप्यते / अभिलपते / चषी भक्षणे // 43 // छषी हिंसायाम् // 44 // चच्छाप / चच्छषे / त्विषीं दीप्तौ // 42 // त्वेषति / त्वेषते / अखिक्षत् / अविक्षत / अविक्षाताम् / अषी असी गत्यादानयोश्च // 47 // दासृग दाने // 48 // माग माने // 49 // मानं वर्तनम् / माहति / माहते / गुहौग संवरणे // 50 // 194 गोहः स्वरे // 42 // 42 // कृतगुणस्य गुहेः स्वरादौ प्रत्यये परे उपान्त्यस्योत् स्यात् // गृहति / गृहते / अगृहीत् / इडभावे सक् / अघुक्षत् / अगूहिष्ट / इडभावपक्षे। 195 दुहदिहलिहगुहो दन्त्यात्मने वा सकः॥४।३।७४॥ एभ्यः परस्य सक्सत्ययस्य दन्त्यादावात्मनेपदे परे लुग् वा स्यात् / इत्यनेन वा सको लुकि अगूढ / अघुक्षत / अघुक्षाताम् / अगूढाः। अघुक्षथाः / जुगृह / जुगुहतुः / / जुगृहे। गुह्यात् / गृहिषीष्ट। घुक्षीष्ट ! गृहिता / गोढा। गूहिष्यति / घोक्ष्यति / गहिष्यते / घोक्ष्यते / भ्लक्षी भक्षणे // 51 // भ्लक्षते / भक्षीत्यन्ये। // इत्युभयपदिनः // // अथ भ्वादिषु द्युतादयः // द्युति दीप्तौ // 1 // द्योतते। . 196 युद्भ्योऽद्यतन्याम् ॥३।३।४४||बहुवचनं गणार्थम् / धुतादिभ्योऽद्य