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________________ 524 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातप्रकरणे 192 उपाद भूषासमवायप्रतियत्नविकारवाक्याध्याहारे॥४।४।९६॥ उपात्परस्य कुगो भूषादिष्वर्थेष्वादिः सट् स्यात् / भूषालंकारः / कन्यामुपस्करोति भूपयतीत्यर्थः / समवायः समुदायः। तत्र न उपस्कृतं समुदितमित्यर्थः / पुनर्यत्नः प्रतियत्नः। सतोऽर्थस्य संबंधाय वृद्धये तादवस्थाय वा समीहा प्रतियत्नः। एधो दकस्योपस्कुरुते / काण्डगुणस्योपस्कुरुते / तत्र प्रतियतत इत्यर्थः / प्रकृतेरन्यथाभावो विकारः / उपस्कृतं भुङ्क्ते वा गच्छति / विकृतमित्यर्थः। गम्यमानाथस्य वाक्यैकदेशस्य स्वरूपेणोपादानं वाक्याध्याहारः / उपस्कृतं जल्पति अधीते वा। सोपस्कराणि सूत्राणि। सवाक्याध्याहाराणीत्यर्थः। एष्विति किम् / उपकरोति। हिक्की अव्यक्ते शब्दे // 7 // हिक्कति / हिक्कते। अञ्चग गतौ // 8 // गतिपूजनयोरयम् / अश्चति / अञ्चते / डुयाचूग याच्यायाम् // 9 // याचति / याचते / विदयमित्येके। डुपची पाके // 10 // पचति / पचते / अपाक्षीत् / अपक्त / राजृग् टुभ्रातृग् दीप्तौ // 12 // राजति / राजते / भ्राजति / भ्राजते / नृभ्रमेति वा एत्वे / रेजतुः। रराजतुः। भेजतुः। वभ्राजतुः। रेजे / रराजे / भेजे / बभ्राजे। भ्राजेरिह पाठो राजसाहचर्यार्थस्तेन यजसृजेत्यत्रास्यैव ग्रहणम् / नन्वेवं षत्वं विकल्प्यतामिति चेत् पुनः पाठः आत्मनेपदानित्यवज्ञापनार्थः / तेन लभति लभते सेवति सेवते इत्यादि सिद्धम् / भजी सेवायाम् // 13 // भजति / भजते / अभाक्षीत् / अभक्त / बभाज / भेजे / भज्यात् / भक्षीष्ट / भक्ता / भक्ष्यति / भक्ष्यते / रञ्जीं रागे // 14 // 193 अघिनोश्च रजेः // 4 / 2 / 50 // रञ्जेरकटि घिनणि शवि च प्रत्यये उपान्त्यनकारस्य लुक् स्यात् / रजति / रजते / व्यञ्जनानामनिटीत्यत्र बहुवचनस्य जात्यर्थखात् अराङ्क्षीत् / अरक्त / रेट्टग् परिभाषणयाचनयोः // 16 // वेण्टग् गतिज्ञानचिन्तानिशामनवादित्रग्रहणेषु // 16 // चतेग याचने // 17 // अचतीत / अचतिष्ट / मेथूग संगमे च // 18 // मिमेथ / मिमेथे / चदेग् याचने // 19 // ऊबुन्दग निशामने // 19 // बुन्दति / ऋदिखाद्वाङि अबुदत् / अबुन्दीत् / अबुन्दिष्ट ।धान्तोऽयमिति नन्दी / णिग् णेग् कुत्सासनिकर्षयोः // 21 // मिग् मेग मेधाहिंसयोः // 23 // मेधृग् संगमे च // 24 // चान्मेधार्हिसयोः। शुधग मृधृग उन्दे // 26 // उन्दः क्लेदनम् / शर्धति / शर्धते / मर्धति / मर्धते / बुधग् बोधने // 27 // बोधति / बोधते / अबुधत् / अबोधीत् /
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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