________________ 526 सिद्धहैमबृहत्प्रक्रिया. [आख्यातमकरणे तनीविषये कर्तर्यात्मनेपदं वा स्यात् / लुदियतादीत्यङ / अद्युतत् / अयोतिष्ट / प्राप्तविभाषेयम् / 197 द्युतेरिः॥४।१।४१॥ द्युतेर्द्वित्वे सति पूर्वस्योत इः स्यात् / विद्युते / रुचि अभिपीत्यां च // 2 // रोचते / अरुचत् / अरोचिष्ट / घुटि परिवर्तने // 3 // घोटते / अघुटत् / अंघोटिष्ट / रुटि लुटि लुठि प्रतीघाते // 6 // श्विताङ् वर्णे // 7 // अश्वितत् / अश्वेतिष्ट / बिमिदाङ् स्नेहने // 8 // मेदते / अमिदत / अमेदिष्ट / विश्विदाइ विष्विदाङ् मोचने च // 10 // चात्स्नेहने / अश्विदत् / अश्वेदिष्ट / स्वेदते / अस्विदत् / अस्वेदिष्ट। शुभि दीप्तौ // 11 // अशुभत् / अशोभिष्ट / क्षुभि संचलने // 12 // अक्षुभत् / अक्षोभिष्ट / णभि तुभि हिंसायाम् // 14 // अनभत् अनभिष्ट ! अतुभत् / अतोभिष्ट / सम्भुङ् विश्वासे // 15 // संभते / अस्रभत् / अस्रम्भिष्ट / भ्रंशूङ स्रसूङ् अवस्रंसने // 17 // अभ्रशत् / अभ्रंशिष्ट / अस्रसत् / अत्रंसिष्ट / ध्वंसूङ् गतौ च // 18 // चादवटेंसने। ध्वंसते / अध्वसत् / अध्वंसिष्ट। अथ द्युताद्यन्तर्गणो वृतादिः / वृतूङ वर्तने // 19 // वर्तते / अतत् / अवर्तिष्ट / ववृते / वर्तिषीष्ट / वर्तिता। 198 वृद्भयः स्यसनोः // 3 // 3 // 45 // बहुवचनं पूर्ववत् / वृतादयो द्युतायन्सगताः पञ्च / तेभ्यः स्यकारादिप्रत्यये विषये सन्प्रत्यये विषये च कर्तर्यात्मनेपदंवा स्यात् / इयमपि प्राप्तविभाषा / वर्तिष्यते / पक्षे / 199 न वृद्भ्यः // 4 / 4 / 56 // तूङ् स्यन्दौङ वधू धू कृपौङ् एभ्यः परस्य स्तायशित आदिरिड् न स्यात् ' अनात्मनाम् ' अनात्मनेपदनिमित्तं चेद् वृतादयो न भवन्ति / अनात्मनेपदनिमित्तं च वृतादयः स्यसनि श्वस्तन्यां च कृपिविकल्पेन भवन्ति स्यन्दिकृपोरौदिल्लक्षणो विकल्पः परसादनेन बाध्यते / वर्त्यति / अवतिष्यत / अवय॑त् / स्यन्दौङ् प्रस्रवणे // 20 // अस्यदत् / अस्यन्दिण्ट / औदित्त्वादिड्विकल्पे अस्यन्त / अस्यन्त्साताम् / सस्यन्दे / सस्यन्दिथे / सस्यन्त्से। स्यन्दिष्यते / स्यन्त्स्यते / स्यन्त्स्यति / अस्यन्दिष्यत / अस्यन्त्स्यत। अस्यन्त्स्यत् / 200 निरभ्यनोश्च स्यन्दस्याप्राणिनि // 2 // 3 // 50 // निरभ्यनुभ्यश्चकारात् परिनिविभ्यश्च परस्याप्राणिकर्तृकेऽर्थे वर्तमानस्य स्यन्देः सकारस्य षो वा स्यात् /