________________ भ्वादयः] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. भासि टुभ्रासि टुम्लासृङ् दीप्तौ // 253 // भासते / बभासे / भ्रासम्लासेति वा श्ये / भ्रास्यते / भ्रासते / जृ भ्रमेति वा एत्वे / भ्रसे। बभ्रासे। भ्लास्यते / भ्लासते। भ्लेसे / बभ्लासे। रासृङ णामृङ शब्दे // 266 // णसि कौटिल्ये // 266 / / भ्यसि भये // 267 // आशमुङ् इच्छायाम् / / 268 // आशंसते। ग्रसुङ् ग्लसुङ् अदने // 270 // घसुङ करणे // 271 // मूर्धन्यान्तोऽयमिति चन्द्रः। // इति सान्ताः // ईहि चेष्टायाम् / / 272 // इहते / ईहाश्चक्रे / अहुङ् प्लिहि गतौ // 274 // अंहते। आनंहे / प्लेहते। पिप्लिहे। गर्हि गल्हि कुत्सने॥२७६॥ बर्हि बल्हि प्राधान्ये // 228 // वर्हि वल्हि परिभाषणहिंसाच्छादनेषु // 280 // दानेऽप्यन्ये। दन्त्योष्ठयादी। अवहिध्वम् / अवहिदम् / वेहङ् जेहङ् वाहङ प्रयत्ने // 283 // विवेहे / जिजेहे / ववाहे / द्राहङ निक्षेपे // 284 // निद्राक्षेपे इत्येके / अहि तर्के // 28 // ऊहते / ऊहाश्चक्रे // गाहौङ् विलोडने // 286 // अगाहिष्ट / अगाढ / जगाहे / गाहिषीष्ट / घाक्षीष्ट / गाहिता / गाढा / गाहिष्यते / घाक्ष्यते / ग्लाहौङ् ग्रहणे // 287 // गाहिवत् / गृहौङ् इत्येके / गहिषीष्ट / अघृक्षत / 182 स्वरेऽतः // 4 / 375 // सकोऽकारस्य स्वरादौ प्रत्यये परे लुक् स्यात् / अघृक्षताम् / अघृक्षन्त / अत्राकारलोपेऽपि स्थानिवद्भावादन्तोऽदादेशो न भवति / जगृहे / जगृहिषे / जघृक्षे / अगहिष्ट / 183 सिजाशिषावात्मने // 4 // 3 // 35 // नामिन्युपान्त्ये सति धातोः परे आत्मनेपदविषये अनिटौ सिजाशिषौ किद्वत्स्याताम् / घृक्षीष्ट / बहुङ् महुङ् वृद्धौ // 289 // बहते। मंहते। इति हान्ताः। दक्षि शैघ्ये च ॥२९०॥धुक्षि धिक्षि सन्दीपनक्लेशनजीवनेषु // धुक्षते / // 292 / / वृक्ष वरणे // 293 // शिक्षि विद्योपादाने // 294 / भिक्षि याच्ञायाम् // 295 // दीक्षि मौण्ड्येज्योपनयननियमनतादेशेषु // 296 // इति दर्शने // 297 / / ईक्षते / ऐक्षत। ऐशिष्ट / ईक्षाचक्रे / // इत्यात्मनेपदिनः //