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________________ 520 सिद्धहैमबृहत्मनिया. [आख्यातमकरणे निलयनम् / दुलयनम् / कथं निरयते दुरयते ? रत्वस्यासिद्धत्वात् निसो दुसश्च न भवति / उपसर्गस्येति किम् / परस्यायनं परायनम् / अयाविति किम् / इंण्क् गतौ। अल् / प्रायः / परायः / अयीति इकारनिर्देशोऽयि गतावित्यस्य परिग्रहार्थः। तयि णयि रक्षणे च // 213 // चाद् गतौ। दयि दानगतिहिंसादहनेषु च // 214 // दयाचक्रे / ऊयैङ् तन्तुसंताने // 215 // ऊयाञ्चक्रे / पूयैङ् दुर्गन्धविशरणयोः // 216 // क्न्यैङ् शब्दोन्दनयोः // उन्दनं क्लेदनम् // 217 // दुर्गन्धेऽपीत्येके / मायैङ् विधूनने // 218 // स्फायैङ् ओप्यायैङ् वृद्धौ // 200 // प्यायते / 179 दीपजनवुधपूरितायप्यायो वा // 3 / 4 / 67 // एभ्यः कर्तर्यद्यतन्यास्ते परे बिच् प्रत्ययो वा स्यात् निमित्तभूततलुक् च / अप्यायि / अप्यायिष्ट / 180 प्यायः पी // 4 / 191 // प्यायतेः परोक्षायां यङि च पीरादेशः स्यात् / पिप्ये / पिप्याते / पिप्यिरे / दीर्घनिर्देशो यग्लुबर्थः / ताङ् सन्तानपालनयोः // 221 / / तायते / अतायि / अतायिष्ट // इति यान्ताः॥ वलि वल्लि संवरणे // 223 // शलि चलने च // 224 // मलि मल्लि धारणे // 226 // भलि भल्लि परिभाषणहिंसादानेषु // 228 कलि शब्दसंख्यानयोः // 229 // कल्लि अशब्दे ॥२३०॥॥इति लान्ताः॥ तेङ देव देवने // 232 // षेङ सेटङ् केट खेटङ् गेट्टङ् ग्लेतृङ् पेङ् प्लेतृङ् मेङ् म्लेजुङ् सेचने // 242 // 181 परिनिवेः सेवः // 2 // 3 // 46 // परिनिव्युपसर्गस्थानाम्यन्तस्थाकवर्गात्परस्य सेवतेर्धातोः सकारस्य द्वित्वेऽपि षः स्यात् / परिषेवते / पर्यषेवत / परिषिषेवे / निषेवते / न्यषेवत / निषिषेवे / विषेवते / व्यषेवत / विषिषेवे / परिनिवेरिति किम् / अनुसेवते / द्वितीयस्य तु परिसेवते / पर्यसेवत / परिसिसेवे / रेसृङ् पवि गतौ // 244 // रेवते / पवते / पेवे / // इति वान्ताः॥ काशङ दीप्तौ ॥२४॥क्लेशि बाधने // इति शान्ताः॥२४६॥ भाषि च व्यक्तायां वाचि // 247 // ईपि गतिहिंसादर्शनेषु // 248 // ईपते। ईपाश्चक्रे / गेषङ् अन्विछायाम्॥ अन्वेषणमन्विच्छा // 249 // येष प्रयत्ने // 250 // जेषङ् णेपृङ् एपृङ् हेषङ्गतौ ॥२५४॥जेषते। नेषते। एषते। एषाश्चक्रे / ड्रेषते / रेषङ् हेष अव्यक्ते शब्दे // 256 // पर्षि स्नेहने // 257 // घुषुङ कान्तिकरणे ॥इति षान्ताः॥२५८ // स्रन्सृङ् प्रमादे // 259 // कासृङ् शब्दकुत्सायाम् / // 260 // शब्दस्य कुत्सा रोगः।
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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