________________ 114 सिद्धहैचबृहत्मक्रिया. [आख्यातमकरणे. // 1 // रुंङ् रेषणे च // 14 // रेषणं हिंसा / चाद्गतौ / पूङ् पवने // 15 // पवनं नीरजीकरणम् / पवते / पविता / मूङ् बन्धने // 16 // मवते / मविता / धृङ् अवध्वंसने // 17 // धरते। 162 ऋवर्णात् // 4 // 3 // 36 // ऋवर्णान्ताद्धातोः परे अनिटावात्मनेपदविषये सिजाशिषौ किद्वत्स्याताम् / __ 163 न वृद्धिश्चाविति क्ङिल्लोपे // 4 / 3 / 11 // अविति प्रत्यये यः कितो डिन्तश्च लोपस्तस्मिन् सति गुणो वृद्धिश्च न स्यात् / लोपोऽदर्शनमात्रमिह गृह्यते / अधृत / अधृषाताम् / क्ङिदिति किम / रागी। रागः / अत्र नलोपे प्रतिषेधो मा भूत् / केचित्तु दधीवाचरति इति किपि लोपे अप्रत्यये णिगि च दध्या दध्ययतीत्यत्रापि गुणवृद्धयोः प्रतिषेधमिच्छन्ति / तन्मतसंग्रहार्थ क्डिल्लोपे सति अविति प्रत्यये परे गुणवृद्धी न भवत इति व्याख्येयम् / विति तु दधयति / रोरवीति / बोभवीति / केचित्तु दीधीवेव्योरिवर्णे यकारे चान्तस्य लुकमन्यत्र तु गुणवृद्धिनिषेधमारभन्ते। तदसत् छान्दसत्वादनयोः। दधे / धृषीष्ट / धर्ता / धरिष्यते। मेङ् प्रतिदाने // 18 // प्रतिदानं प्रत्यर्पणम्। प्रणिमयते। दैङ् त्रैङ् पालने // 20 // दयते। 164 इश्च स्थादः // 4 // 3 // 41 // तिष्ठतेर्दासंज्ञाच्च धातोः पर आत्मनेपदविषयः सिच् किद्वत्स्यात् तत्संनियोगे च स्थादोरन्तस्येकारादेशः / अदित / अदिषाताम् / - 165 देर्दिगिः परोक्षायाम् // 4 / 1 / 32 / देङः परोक्षायां दिगिरित्ययमादेशः स्यानचायं द्विः। दिग्ये / दिग्याते / दिग्यिरे / त्रायते / अत्रास्त / अत्रासाताम् / तत्रे / त्रासीष्ट / त्राता। त्रास्यते। श्यैङ् गतौ // 21 // प्यैङ् वृद्धौ // 22 // // इति स्वरान्ताः।। वकुङ् कौटिल्ये // 23 // वङ्कते / गतावपीत्येके। मकुङ् मण्डने // 24 // मण्डनं शोभनम् / अकुङ् लक्षणे // 26 // आनथे / शीकृङ् सेचने / 26 // लोकङ् दर्शने // 27 // लोकते / आलोकिष्ट। लुलोके। श्लोकङ् संघाते // 28 // ग्रन्थे इत्यर्थः। स च ग्रन्थो व्यापारो ग्रथ्यमानस्य ग्रन्थितुर्वा / आयेऽकर्मको द्वितीये सकर्मकः / श्लोकते / व्रकुङ् धेकृङ् शब्दोत्साहे // 30 // शब्दस्योत्साह औद्धत्यं वृद्धिश्च / रेकङ् अकुङ् शङ्कायाम् // 32 // ककि लौल्ये ॥३३॥लौल्यं गर्वश्चापल्यं च / ककते।