________________ सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातभकरणे रणम् / पूल संघाते // 41 // मूल प्रतिष्ठायाम् // 418 // फल निष्पत्तौ // 419 // फुल्ल विकसने // 420 // चुल्ल हावकरणे // 421 // फुल्ल विकसने // 422 // चिल्ल शैथिल्ये च // 423 // पेल फेल शेल पेल सेल वेहल सल तिल तिल्ल पल्ल वेल्ल गतौ // 434 // वेल चेल केल क्वेल खेल स्खल गतौ // 440 // खल संचये च। // 441 // श्वल इवल्ल आशुगतौ // 443 // गल (इति लान्ताः) चर्व अदने // 445|| अगालीत् / अचर्वीत् / पूर्व पर्व मर्व पूरणे // 448 // गर्व धिवु शव गतौ // 451 // कर्व खर्व गर्व दपै // 454 // ष्ठिवू शिवू निरसने // 456 // ष्ठिवूक्लम्वाचम इति दीर्घ ष्ठीवति / - 148 तिर्वा ष्ठिवः // 41 // 43 // ष्ठिवेद्वित्वे सति पूर्वस्य द्वितीयस्य तिरादेशो वा स्यात् / तिष्ठेव टिष्ठेव / तेरिकारोत्रोच्चारणार्थः। तेन 'इन्ध' इत्यादिना वेटि तुष्ठयूषति टुष्ठयूषति / पूर्वस्येत्यादेशविधानमेव ज्ञापयति ष्ठिवेः पकारः ठकारपरः ष्ठाष्ट्यैप्रभृतीनां तु तवर्गपरः / तेन तस्थौ तष्टयौ इत्यादि भवति / चिक्षेव / जीव प्राणधारणे // 457 // पीव मीव तीव नीव स्थौल्पे // 461 // उर्वै तुर्वै थुर्वै दुर्वै धुर्वे जुबै अव भवं शर्व हिंसायाम् // 470 // मु मव बन्धने // 472 // गुर्दै उद्यमे // 473 // पिवु मिवु निवु सेचने // 476 // हिवु दिवु जिवु प्रीणने॥४७९।। इवु व्याप्तौ // 480 // इन्वति / इन्वाञ्चकार / अव रक्षणगतिकान्तिप्रीतितृप्त्यवगमनप्रवेशश्रवणखाम्यर्थयाचनक्रियेच्छादीप्त्यवाप्त्यालिङ्गनहिंसादहनभावद्धिषु।। // 481 // अवति / आवीत् / मा भवानवीत् / इति वान्ताः। कश शब्दे // 482 // सौत्रोऽयमित्येके। मिश मश रोषे च // 484 // शश प्लुतगतौ // 48 // उत्पत्य ग. मन इत्यर्थः। णिश समाधौ / / 486 / / दृ} प्रेक्षणे // 487 / / पश्यति। ऋदिलवीत्यङि ऋदृशोऽङीति गुणे अदर्शत् / पक्षे। . :- 149 अः सृजिदृशोऽकिति // 4 / 4 / 116 // सृजिदृशोः स्वरात्परो धुडादौ प्रत्यये अकारोऽन्तः स्यात् अकिति / परत्वादकारागमे सति वृद्धिः। ततो यजसृजेति शस्य षत्वे / : 180 षढोः कः सि // 2 / 162 // षकारढकारयोः स्थाने सकारे ककार आदेशः स्यात / नाम्यन्तस्येति सस्य षत्वे अद्राक्षीत् / अद्राष्टाम् / अद्राक्षुः। ददर्श / ददृशतुः। सृजिदृशीति वेटि। ददर्शिथ / दद्रष्ठ / दृश्यात् / द्रष्टा / द्रक्ष्यति। ॥इति शान्ताः।। घुष शब्दे / // 48 // अघुषत् / अघोषीत् / चूष पाने // 489 // तूष