________________ भ्वादयः] सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. 509 शास्त्रस्य / इडो नेच्छन्त्येके / तन्मते अधिजिगंसिता अधिजिगांसुः इत्याद्येव भवति। अनात्मने इति किम् / गंस्यते ग्रामः / इणिकोर्जिगांस्यते। अधिजिगांस्यते माता / कथं जिगमिषितेवाचरति जिगमिपित्रीयते इति ? आत्मनेपदस्य क्यङाश्रितत्वेन बहिरङ्गखात् / केचित्तु आत्मनेपदविषयस्य गमेरात्मनेपदाभावे सति इटो विकल्पमिच्छन्ति / गम-संजिगंसिता संजिगमिषिता / इङ अधिजिगंसिता अधिजिगमिषिता / अनात्मनेपदनिमित्तात्तु गमेनित्यमिटमिच्छन्ति-गमिष्यति निगमिषतीति / जिगमिषितुम् अधिनिगमिषितुम् अधिजिगमिषितव्यमित्यत्रापि गमेरनात्मनेपदविषयत्वानित्यमिड् भवति / तन्मतसंग्रहार्थमावृत्या सूत्रद्वयं व्याख्येयम् / 'गमोऽनात्मने ' ' गमोऽनात्मने ' इति / तत्र पूर्वस्यायमर्थः / गमेः सकारस्यादिरिड् वा स्यात् आत्मनेपदं चेन भवति / वेत्यनुवर्तनीयम् / द्वितीयसूत्रे तु अनात्मन इति प्रकृतिविशेषणं व्याख्येयम् / ततश्च गमेरात्मनेपदविषयात् सकारस्यादिनित्यमिट् स्यात् / इहानात्मने इति प्रकृतिविशेषणात् पूर्वसूत्रे आत्मनेपदविषयादिति सामर्थ्याल्लभ्यते / एवं च तन्मतसंग्रहः सिद्धो भवति। एके तु परस्मैपदविषयस्यैव गमेरिटमिच्छन्ति नात्मनेपदविषयस्य / तन्मतसंग्रहार्थं तु नात्मने इत्यसमस्तं व्याख्येयम् / आत्मन इति च प्रकृतिविशेषणम् / एवं च गमेरात्मनेपदविषयात सकारस्यादिरिड न भवतीत्ययमों भवति / तेन संजिगंसिता संजिगंसितव्यम् अधिजिगांसिता व्याकरणस्य / अधिजिगांसितव्यम् / इति पवर्गीयान्ताः। हय हर्य क्लान्तौ च // 389 // चाद् गत्याम् / यान्तत्वान्न वृद्धिः अहयीत् / मव्य बन्धने // 390 // मूर्य ईर्ष्या इय॑ ईष्यार्थाः // 393 // शुच्यै चुच्यै अभिषवे // 398 // द्रवेणाद्रवाणां परिवासनमभिषवः। स्नानमित्यन्ये // इति यान्ताः // छद्म गतौ // 396 // क्मर हर्छने // 397 // अभ्र वभ्रमभ्र गतौ // 400 / आनभ्र। चर भक्षणे च // 401 // धोक्र गतिचातुर्ये // 402 // ऋदित् धोरति / खोक्र प्रतिघाते // 403 // गतेरित्यनुवर्तते / चुखोर / // इति रान्ताः // दल त्रिफला विशरणे // 40 // अफालीत् / पफाल / फेलतुः। मील श्मील स्मील क्ष्मील निमेषणे // 409 // निमेषणं संकोचः / पील प्रतिष्टम्भे // 410 // प्रतिष्टम्भो रोपणम् / णील वर्णे // 411 // वर्णोपलक्षितायां क्रियायामित्यर्थः / शील समाधौ // 412 // कील बन्धे // 413 // कूल आवरणे // 414 // शुल रुजायाम् // 415 // तूल निष्कर्षे // 416 // निष्कर्षोऽन्तःस्थस्य वहिनिस्सा