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________________ 504 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातमकरणे यिषीयास्ताम् / ऋतीयिषीरन् / ऋत्यात् / ऋत्यास्ताम्। ऋत्यामुः। ऋतीयिता / ऋतीयितासे / अर्तिता। अतितासि / ऋतीयिष्यते / अतिष्यते। आर्तीयिष्यत। कुथु पुथु लुथु मथु मन्थ मान्थ हिंसासंक्लेशनयोः // 286 // उदित्वान्नलोपाभावः / कुन्थ्यात् / मन्थ्यात् / मथ्यात् / माथ्यात् / खादृ भक्षणे // 287 // बद स्थैर्ये // 288 // खद हिंसायां च // 289 चात्स्थैर्ये / तत्राकर्मकः / गद व्यक्तायां वाचि // 29 // गदति / अगादीत् / अगदीत् / जगाद / पणिगदति / नेङ्मादेति णत्वम् / रद विलेखने // 291 // भेदने इत्यर्थः / णद विश्विदा अव्यक्ते शब्दे // 293 // नदति / प्रणदति / प्रणिनदति / अर्द गतियाचनयोः। // 294 // अदति / आदीत्। आनद ।नर्द गर्द गर्द शब्दे // 297 // गोपदेशाभावान्न णत्वम् / प्रनर्दति / णोपदेशे तु प्रणदेति / तद हिंसायाम् // 298 // कर्द कुत्सिते शब्दे / कुत्सिते कौक्षे इत्यर्थः // 299 / / खर्द दशने // 300 // अदु बन्धने // 301 // इदु परमैश्वर्यं // 302 // इन्दति / इन्दाञ्चकार / विदु अवयवे // 30 // पवर्गतृतीयादिः / विन्दति / अवयवं करोतीत्यर्थः। णिदु कुत्सायाम् // 304 // टुनदु समृद्धौ // 305 // नन्दति। नन्द्यात् / उदित्वान्नलोपो न / चदु दीप्त्याहादनयोः ॥३०६॥चचन्द / दु चेष्टायाम् // 307 // कदु क्रदु क्लदु रोदनादानयोः // 310 // क्लिदु परिदेवने // 312 // स्कन्दं गतिशोषणयोः // 312 // स्कन्दति / ऋदित्त्वादङ्वा / अस्कदत् / अस्कान्त्सीत् / अस्कान्ताम् / अस्कान्त्सुः। चस्कन्द / चस्कन्दिथ। चस्कन्थ / नलोपः स्कयात् / स्कन्ता / 128 वेः स्कदोऽक्तयोः // 2 // 3 // 51 // विपूर्वस्य स्कन्देः संबन्धिनः सकारस्य पो वा स्यात् न चेत् क्तक्तवतू प्रत्ययौ भवतः। द्विवचनादर्थवद्ग्रहणानपेक्षमुभयपरिग्रहः / विष्कन्ता / विस्कन्ता / विष्कन्तुम् / विस्कन्तुम् / क्तयोरिति किम् / विस्कन्नः। विस्कनवान् / 127 परेः // 2 // 3 // 52 // परिपूर्वस्य स्कन्देः सकारस्य षो वा स्यात् / परिकन्ता / परिस्कन्ता / परिष्कन्तुम् / परिस्कन्तुम् / योगविभागादक्तयोरिति नानुवर्तते / तेन क्तयोरपि विकल्पो भवति / परिष्कण्णः। परिस्कन्नः / परिष्कण्णवान् / परिस्कन्नवान् / केचिनु परिपूर्वस्य स्कन्देरजन्तस्य घअन्तस्य वा प्राच्यभरतविषये प्रयोगे नित्यं षत्वमन्यत्र विकल्पंमिच्छन्ति / अन्ये तु प्राच्यभरतविषये प्रयोगे पत्वाभावमन्यत्र तु विकल्पमिच्छन्ति / तदुभयं नारम्भणीयम् / अनेनैव सिद्ध
SR No.032767
Book TitleHaimbruhatprakriya Mahavyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGirijashankar Mayashankar Shastri
PublisherGirijashankar Mayashankar Shastri
Publication Year1931
Total Pages1254
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size33 MB
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