________________ भ्वादयः ] सिद्धहैमबृहत्पक्रिया. 499 नेच्छन्ति / तेनाग्लुश्चत् / सश्चति / म्लेच्छ अव्यक्तायां वाचि / // 115 // लछ लाछु लक्षणे // 117 // वाछु इच्छायाम् / वाञ्छति / आछु आयामे // 118 // अनात इति सूत्रेऽनाकारस्थानकथनात् आग्छ / आञ्छतुः। आञ्छुः / कश्चिदत्रापि आनाञ्छ आनाञ्छतुरित्याह / ह्रीच्छ लज्जायाम् // 119 // हीच्छति / जिहीच्छ / हर्च्छा कौटिल्ये // 120 // हूछति / मूर्छा मोहसमुच्छाययोः॥१२१॥ मूर्च्छति / स्फूर्छा स्मूर्छा विस्मृतौ // 123 // युच्छ प्रमादे // 124 // उछु उच्छे // 125 / / उन्छति / गुरुनाम्यादेरनृच्छ्रो :-उच्छाञ्चकार / धृज धृजु ध्वज ध्वजु ध्रज ध्रजु वज ब्रज पस्न गतौ // 134 // धर्जति / धृञ्जतीत्यादि / व्रजति / 110 वबजलः // 4 / 3 / 48 // वदव्रजोर्लकारान्तानां रेफान्तानां च धातूनामुपान्त्यस्याकारस्य परस्मैपदविषये सिचि परे वृद्धिः स्यात् / व्यञ्जनादेवापान्त्यस्येत्यस्यापवादोऽयम् / अवाजीत् / ववाज / पस्ज गतौ / अस्य सस्य शषाविति सस्य शः / सज्जति / अज क्षेपणे च / चाद् गतौ // 135 // अजति / 111 अघक्यबलच्यजेर्वी // 4 / 4 / 2 // घञ् क्यब अल अच्-वर्जितेऽशिति प्रत्यये विषयभूतेऽजेर्वी इत्यादेशः स्यात् / अवैषीत् / पक्षे आजीत् / विवाय / विव्यतुः। अत्र वकारस्य व्यञ्जनपरत्वात् 'भ्वादेर्नामिन ' इति दीर्घ प्राप्ते स्वरस्य परे प्राविधाविति स्थानिवद्भावेन स्वरपरत्वम् / न च न सन्धीति निषेध इति वाच्यम् / स्वरदीर्घयलोपेषु लोपस्वरादेश एव न स्थानिवदित्युक्तेः। थवि सृजिदृशीत्यादिना वेट् / विवयिथ / विवेथ / तदुक्तम्: स्वरान्तोऽकारवान्वा यस्तृच्यनिड् थवि वेडयम् / ? ऋदन्त ईदृनित्यानिट् , खाद्यन्यः सेट् परोक्षके / पक्षे आजिथ। विव्यथुः। विव्य। विवाय। विवय। विव्यिव / आजिव / विव्यिम / आजिम / वीयात् / अज्यात् / वेता / अजिता / वेष्यति / अजिष्यति / अवेष्यत् / आजिष्यत् / कुजू खुजू स्तये // 137 // अर्ज सर्न अर्जने // 139 // अर्जति / आनर्ज / सर्जति / कर्ज व्यथने // 140 // चकर्ज / खर्ज माजने च // 141 // खज मन्थे // 142 // चखाज / खजुगतिवैकल्ये // 143 // खञ्जति। एज कम्पने // 144 // एजति / एजाञ्चकार। वोस्फूर्जा वज्रनिर्घोषे // 145 // स्फूर्जति / क्षीज कूज गुज गुजु अव्यक्ते शब्दे // 149 // क्षीजति / कूजति / गोजति / गुञ्जति / लज लजु