________________ 498 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. [आख्यातप्रकरणे 106 न शसददवादिगुणिनः // 4 / 1 / 30 // शसिदद्योर्वकारादीनां गुणिनां च धातुनां स्वरस्यैत्वं न स्यात् / ववखतुः / ववखुः। ववखिथ। मङ्खति। अमसीत् / ममङ्ख / अङ्गति / आङ्गीत् / . 107 अनातो नश्चान्त ऋदाद्यशौसंयोगस्य // 4 / 1 / 69 // ऋदादेरश्रोतेः संयोगान्तस्य च धातोः परोक्षायां द्वित्वे पूर्वस्यादेरकारस्यानात आकारस्थानेऽनिष्पन्नस्याकारः स्यात् कृताकारात्त्वस्मानोऽन्तश्च / आनङ्ग / आनङ्गतुः। आनङ्गुः / ऋदादेरिति किम् / आर / आरतुः। अशावित्यौकारः किम् / अश्नातेर्मा भूत् / आश / आशतुः। संयोगस्येति किम् / आट / अनात इति किस् / आछु आयामे-आब्छ / कश्चिदत्रापीच्छति-आनाञ्छ / अङ्गयात् / अङ्गिता। अजिष्यति / आङ्गिष्यत् / त्वगु कम्पने च / चाद्गतौ // 89 // त्वङ्गति / अत्वङ्गीत / युगु जुगु वुगु वर्जने // 92 // गग्य हसने // 93 // दघु पालने // 94 // वर्जनेऽपीत्येके। शिघु आघ्राणे // 9 // लघु शोषणे // 96 // इति कवर्गीयान्ताः। शुच शोके // 97 // शोचति / अशोचीत् / शुशोच / कुच शब्दे तारे // 98 // कोचति / कुञ्च गतौ // 99 // क्रुश्च च कौटिल्याल्पीभावयोः // 100 // लुश्च अपनयने // 101 // 108 नो व्यञ्जनस्यानुदितः // 4 / 2 / 45 // व्यञ्जनान्तस्यानुदितो धातो. रुपान्त्यस्य नकारस्य विङति प्रत्यये परे लुक्स्यात् / कुच्यात् / क्रुच्यात् / लुच्यात् / व्यञ्जनस्येति किम् / नीयते / अनुदित इति किम् / टुनदु-नन्द्यते। क्डिन्तीत्येव / उपान्त्यस्येत्येव / नह्यते / अर्च पूजायाम् // 102 // अर्चति / आर्चीत् / आनर्च / आनर्चतुः / आनचुः / अया॑त् / अर्चिता। अर्चिष्यति / आर्चिष्यत् / अञ्चू गतौ च // 103 // चात्पूजायाम् / गतौ 'अश्वेरन याम् ' इति नकारलकि अच्यात् / पूजायाम् अञ्च्यात् / वञ्चू चञ्चू तच्चू त्वञ्चू मञ्चू मुव्चू इचू Zञ्चू म्लुचू म्लुच्चू पश्च गतौ // 114 // ग्रुचु ग्लुचू स्तेये। गतावपीति केचित् / - 109 ऋदिच्छुिस्तम्भू चुम्लुचूग्रुचूग्लुचूग्लुंचूज्रो वा // 3 // 4 // 65 // ऋदितो धातोः श्विप्रभृतिभ्यश्च कर्तर्यद्यतन्यां परस्मैपदे वाङ्प्रत्ययः स्यात् / अZचत्। अम्रोचीत् / अम्लुचत् / अम्लोचीत् / अग्रुचत् / अग्रोचीत् / ग्रुचो नेच्छन्त्यन्ये / अग्लुचत् / अग्लोचीत् / अग्लुश्चीत् / ग्लुचूग्लुश्चोरेकतरोपादानेऽपि रूप सिद्धयति अर्थभेदात्तु द्वयोरुपादानम् / अन्ये त्वविधानसामर्थ्यात् ग्लुञ्चेनलोपं