________________ प्रकरणम् 1 सिद्धहैमबृहत्मक्रिया. 293 प्रकृतिविशेषोपादानमात्रेण प्रत्यया विधास्यन्ते तेषां कृतादयोऽर्था विभक्तयश्च परस्ताद् वक्ष्यन्ते / 1415 राष्ट्रादियः // 6 // 3 // 3 // राष्ट्रशब्दात् प्राग्जितीये शेषेऽर्थे इयः प्रत्ययः स्यात् / राष्ट्र क्रीतः कुशलो जातो भवो वा राष्ट्रियः। शेष इत्येव / राष्ट्रस्यापत्यं राष्ट्रिः। 1416 दूरादेत्यः // 6 // 34 // दूरशद्धात् शेषेऽर्थे एत्यः प्रत्ययः स्यात् / दूरे भवो दूरेत्यः। 1417 उत्तरादाहञ् // 6 // 35 // उत्तरशद्धाच्छेषेऽर्थे आहञ् प्रत्ययः स्यात् / औत्तराहः। औत्तराहा स्त्री। औत्तराहीति उत्तराहिशद्वाद भवार्थेऽणि / 1418 पारावारादीनः // 6 // 3 // 6 // पारावारशब्दाच्छेषेऽर्थे ईनः प्रत्ययः स्यात् / अवारस्समुद्रस्तस्य पारं राजदन्तादित्वात् पारावारस्तत्र भवो जातो वा पारावारीणः 1419 व्यस्तव्यत्यस्तात् // 6 // 37 पारावारशद्वाद व्यस्ताद विपर्यस्ताच्च ईनः प्रत्ययः स्यात् / पारीणः। अवारीणः। अवारपारीणः / 1420 ग्रुप्रागपागुदप्रतीचो यः // 6 // 38 // दिवशद्धात् प्राचं अपाच उदच प्रत्यच इत्येतेभ्यश्चाव्ययानव्ययेभ्यः शेषेऽर्थे यः प्रत्ययः स्यात् / दिवि भवं दिव्यम् / प्राचि प्राग्वा भवं पाच्यम् / उदीच्यम् / प्रतीच्यम् / दिग्देशनुत्तेः पागादेरयं यः कालवृत्तेस्त्वव्ययात् परत्वात् सायमित्यादिना तनट् / अनव्ययात्तु वर्षाकालेभ्य इतीकण / माक्तनं प्राचिकमित्यादि / 1421 ग्रामादीनन च // 6 // 3 // 9 // ग्रामशद्धाच्छेषेऽर्थे ईना चकाराद्यश्च प्रत्ययः स्यात् / ग्रामीणः , ग्राम्यः। अकारः पुंवद्भावप्रतिषेधार्थः। ग्रामीणा भार्याऽस्य ग्रामीणाभायः। 1422 कत्त्यादेश्चैयकञ् // 6 // 3 // 10 // कत्रि इत्येवमादिभ्यो ग्रामशद्वाच शेषेऽथै एयकञ् प्रत्ययः स्यात् / कात्रेयकः। पौष्करेयकः / ग्रामेयकः। एवं च