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________________ जैन साधना पद्धति : मनोऽनुशासनम् 197 आचार्य तुलसी ने साधक एवं सुधी विद्वानों के सहज स्मरण रखने के लिए 181 सूत्रों में हिन्दी व्याख्या कर, इसकी उपादेयता में चार चाँद ही नहीं लगाये अपितु इसे सर्वबोधगम्य बना दिया / __ "मनोऽनुशासनम्" के प्रणयन में आचार्य तुलसी महर्षि पतञ्जलि से प्रभावित है, जिसे निम्न विवेचन से समझा जा सकता है - पतञ्जलि आचार्य तुलसी अथ योगानुशासनम् / अथ "मनोऽनुशासन" / योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः / इन्द्रियसापेक्ष सर्वार्थग्राहि त्रैकालिकं संज्ञानं मनः / "मनोऽनुशासन" का परिचय : यह ग्रन्थ सात प्रकरणों में विभाजित है / प्रथम प्रकरण में मन, इन्द्रिय और आत्म निरूपण के साथ योग के लक्षण, शोधन और निरोध की प्रक्रिया और उपायों का वर्णन हैं / द्वितीय प्रकरण में मन के प्रकार और निरोध के उपाय / तृतीय प्रकरण में ध्यान का लक्षण और उसके सहायक तत्त्व, स्थान (आसन), प्रतिसंलीनता (प्रत्याहार) की परिभाषा, प्रकार, स्वाध्याय, भावना, व्युत्सर्ग की प्रक्रिया / चतुर्थ प्रकरण में ध्याता, ध्यान, धारणा, समाधि, लेश्या आदि का विवेचन हैं / पंचम प्रकरण में प्राणायाम का विस्तृत विवेचन के साथ होने वाली सिद्धियाँ वर्णित है / षष्ठ प्रकरण में महाव्रतों (यमों) के साथ संकल्प का निरूपण है और श्रमण धर्म के प्रकारों के रूप में नियम का वर्णन है। सप्तम् प्रकरण में भावना एवं फल निष्पत्ति का विवेचन हैं / "मनोऽनुशासनम्" को आचार्य तुलसी कृत जैन योग का सूत्रग्रन्थ कहा जा सकता है / इसके विषय में तेरापंथ के दसवें आचार्य महाप्रज्ञ जी ने कहा है - "इसमें योगशास्त्र की सर्वसाधारण द्वारा अग्राह्य सूक्ष्मताएँ नहीं है। किन्तु जो हैं, अनुभवयोग्य और बहुजनसाध्य हैं / इस मानसिक शिथिलता के युग में मन को प्रबल बनाने की साधन-सामग्री प्रस्तुत कर आचार्य श्री ने मानव-जाति को बहुत ही उपकृत किया है / "11 यह आकार में लघु और प्रकार में गुरु है / 12 "मनोऽनुशासनम्" का प्रयोजन : आचार्य तुलसी'२ ने 'मनोऽनुशासनम्' की रचना के पीछे अपना मंतव्य स्पष्ट करते हुए लिखा है - 'मानसिक सन्तुलन के अभाव में व्यक्ति का जीवन दूभर हो जाता है / सब संयोगों में भी एक विचित्र खालीपन की अनुभूति होती है। अनेक व्यक्ति पूछते हैं - शान्ति कैसे मिले ? मन स्थिर कैसे हो ? मैं उन्हें यथोचित समाधान देता / ये प्रश्न कुछेक व्यक्तियों के नहीं हैं / ये व्यापक प्रश्न हैं / इसलिए इनका समाधान भी व्यापक स्तर पर होना चाहिए / 'मनोऽनुशासनम्' निर्माण का यही प्रयोजन है।
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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