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________________ क्रमबद्धपर्याय 181 "भामण्डल की युति जगमगात, भवि देखत निजभव सात-सात"९ तीर्थंकर भगवान के प्रभावमण्डल में भव्यजीव को अपने-अपने सात-सात भव दिखाई देते हैं। उन सात भवों में तीन भूतकाल के, तीन भविष्य के एवं एक वर्तमान भव दिखाई देता है / इसके अनुसार प्रत्येक भव्य के कम से कम भविष्य के तीन भव तो निश्चित रहते ही हैं, अन्यथा वे दिखाई कैसे देते ? तीन भव की आयु एक साथ बंध नहीं सकती / अत: यह भी नहीं कहा जा सकता हि आयुकर्म बंध जाने से भव निश्चित हो गए थे। इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि वे पहले से ही निश्चित रहते हैं, आयुकर्म के बंध से निश्चित नहीं होते / प्रथमानुयोग के सभी शास्त्र भविष्य की निश्चित घोषणाओं से भरे पड़े हैं / भगवान नेमिनाथ ने द्वारका जलने की घोषणा बारह वर्ष पूर्व कर दी थी। साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया था कि किस निमित्त से, कैसे और कब - यह सब - कुछ घटित होगा / अनेक उपायों के बाद भी वह सब कुछ उसी रूप में घटित हुआ / भगवान आदिनाथ ने मारीचि के बारे में एक कोड़ा-कोड़ी सागर तक कब क्या घटित होने वाला है - सब कुछ बता ही दिया था / क्या आप उसकी सत्यता में शंकित हैं ? क्या वह सब-कुछ पहले से निश्चित नहीं था ? असंख्य भव पहिले ये बता दिया गया था कि वे चौबीसवें तीर्थंकर होंगे / तब तो उनके तीर्थंकर प्रकृति का बंध भी नहीं हुआ था ? क्योंकि तीर्थंकर प्रकृति बंध जाने के बाद असंख्य भव नहीं हो सकते / तीर्थंकर प्रकृति को बांधने वाला तो उसी भव में, या तीसरे भव में, अवश्य मुक्ति को प्राप्त कर लेता है। अतः यह भी नहीं कहा जा सकता कि कर्म बंध जाने से उनका उतना भविष्य निश्चित हो गया था। ___यह सब तो यही सिद्ध करता है कि आदिनाथ के समय से ही यह निश्चित था कि वे चौबीसवें तीर्थंकर होंगे / जब चौबीसवें तीर्थंकर होने का निश्चित था तो फिर बीच के भव भी निश्चत ही थे / निश्चित थे - तभी तो जाने जा सके और बताये भी जा सके। तिलोयपण्णत्ति, अधिकार 4, श्लोक 1002 से 1016 तक में अष्टांग निमित्तज्ञान द्वारा भविष्य जाने जाने का स्पष्ट उल्लेख है / आचार्य भद्रबाहु ने निमित्तज्ञान के आधार पर उत्तर भारत में बारह वर्ष के अकाल की घोषणा की थी, जो पूर्ण सत्य उतरी / सम्राट चन्द्रगुप्त को स्वप्न आए थे, जिनके आधार पर भी भविष्य की घोषणाएं की गई थीं / क्या करणानुयोग में यह नहीं लिखा है कि छह महीने आठ समय में छह सौ आठ जीव निगोद से निकलेंगे और इतने ही समय में इतने ही जीव मोक्ष भी जावेंगे / क्या इससे अधिक जीव निगोद से निकल सकते हैं या मोक्ष जा सकते हैं ? क्या यह निश्चित नहीं है ? है, तो फिर क्या इससे वस्तु की स्वतंत्रता खण्डित नहीं होती ? इतने ही जीव मोक्ष क्यों जावेंगे, इससे अधिक क्यों नहीं ?
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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