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________________ पज्जमूढा हि परसमया 151 जड़, अज्ञानी, जैसे-विचारमूढ, 4. भ्रान्त, भ्रमपूर्ण, प्रतारित, विचलित 5. अपक्तजन्मा 6. संशयोत्पादक। संयुक्त पद बनाते हुए मुढात्मन् - मन से जड़ीभूत, मूढवाद - गलत धारणा, मूढधी, मूढमति - मूर्ख, निर्बुद्धि, सीधासादा तथा मूढसत्त्व - मोहित, दीवाना आदि अर्थों के द्वारा 'मूढ' शब्द को समझाया गया है / 13 "योग में चित्त की पाँच वृत्तियों या अवस्थाओं में एक 'मूढता' मानी गयी है / तथा इसमें चित्त तमोगुण के कारण निद्रायुक्त अथवा स्तब्ध रहता है - ऐसा कहा है ?14 मूढ़ता के विषय में उक्त विवेचन से हम यह समझ सकते हैं कि मूढ़ता कोई अच्छी वस्तु नहीं है तथा किसी भी वस्तु की मूढ़ता उचित नहीं मानी गयी है। मूढ़ता में विशेषता होती है कि वह हमारी आँखें बन्द कर देती है, हमें जड़ बना देती है, हमें नासमझ, मूर्ख, किंकर्तव्यविमूढ, संशयग्रस्त तथा भ्रान्त बना देती है। इतना ही नहीं, उसके कारण हमारा चित व्याकुल, उद्विग्न, विह्वल हो जाता है, जिससे अनन्त आकुलता का जन्म होता है / इसका एक अर्थ मोहित या दीवाना भी बताया गया है, तात्पर्य यह है कि मूढता दुनिया के हमारे रास्ते बन्द करके मात्र एक रास्ता ही खुला रखती है और हम मात्र उसी दिशा में ही सोचते, विचारते और चलते रहते हैं / वह हमें यह विचार करने का अवसर भी नहीं देती कि यह रास्ता हमें कहाँ ले जा रहा है ? यह हमारे अभीष्ट की सिद्धि कराती भी है या नहीं ? आदि आचार्यकल्प पण्डित टोडरमलजी ने अपने मौलिक ग्रन्थ मोक्षमार्ग प्रकाशक में मोहनधूल का एक उदाहरण दिया है / 15 जिस प्रकार यह मोहनधूल जिस किसी के सिर पर डाल दी जाती है तो उसकी सोचने-समझने की शक्ति क्षीण हो जाती है, कुण्ठित हो जाती है, उसी प्रकार यह मूढ़ता भी मोहनधूल का भावात्मक प्रयोग है, हमें मोहनधूल नामक किसी पदार्थ की खोज करने की आवश्यकता नहीं है, यह मूढ़ता ही मानो मोहनधूल है। यही कारण है कि मूढ़ता को 'मोह' संज्ञा से भी अभिहित किया गया है। अनेक प्रकार की कलाओं में सम्मोहन भी एक कला मानी गयी है, जो हमें प्रत्येक वस्तु को भी देखने नहीं देती / सुना है - एक सम्मोहनकर्ता ने कुछ दिन पूर्व आगरा का ताजमहल गायब कर दिया था तथा वहाँ उपस्थिति लोगों के पूछने पर, उन्होंने वहाँ ताजमहल होने से स्पष्ट इंकार कर दिया / वस्तुतः यह सम्मोहन विद्या का प्रभाव था, ताजमहल तो वहीं था। उसी प्रकार इस मूढता में भी अलौकिक सम्मोहन शक्ति है, परन्तु इस सम्मोहन (सत्-मोहन) में कुछ भी सत् नहीं है, सब कुछ असत् है, मिथ्या पर्याय-मूढ़ता - यह पद पर्याय और मूढ़ता इन दो शब्दों से मिलकर बना है। 'मूढ़ता' शब्द के उपरोक्त अर्थों का सामंजस्य बिठाने पर सम्पूर्ण वाक्य की निम्न निष्पत्तियाँ प्राप्त होती हैं - (1) जो पर्याय के सम्बन्ध में नहीं जानते, वे परसमय हैं / (2) जो पर्याय में मोहित हैं, वे परसमय हैं / (3) जिन्हें पर्याय के अलावा कुछ नहीं दिखता, वे परसमय हैं / (4) जो पर्याय को अपना मानते हैं, वे परसमय हैं /
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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