SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 156
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 146 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा (च) “तद्भावः परिणामः / "15 उसका होना अर्थात् प्रतिसमय बदलते रहना परिणाम है / अर्थात् गुण के परिणमन को पर्याय कहते हैं / परिणाम पर्याय का ही दूसरा नाम है / (छ) “सामान्यविशेषगुणा एकस्मिन् धर्माणि वस्तुत्वनिष्पादकास्तेषां परिणामः पर्यायः / "16 सामान्यविशेषात्मक गुण एक द्रव्य में वस्तुत्व के बतलाने वाले हैं। उनका परिणाम पर्याय है। पर्याय के समानार्थी शब्द : जैन साहित्य में पर्याय के अनेक समानार्थी शब्द बताए गए हैं / यथा - (क) “पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः / 17 अर्थ :- पर्याय विशेष, अपवाद और व्यावृत्ति - इन सबका एक अर्थ है / (ख) "व्यवहारो च वियप्पो भेदो तह पञ्जओत्ति एयट्टो / "18 अर्थ :- व्यवहार, विकल्प, भेद और पर्याय ये एक एकार्थवाची (समानार्थी) हैं / (ग) “पर्ययः पर्यव इत्यनान्तरम् / "19 अर्थ :- पर्य, पर्यव और पर्याय - ये समानार्थी हैं / (घ) "अपि चांशः पर्यायो भागो हारो विधा प्रकारश्च / भेदश्छेदो भंगः शब्दाश्चैकार्थवाचक एते // '20 अर्थ :- अंश, पर्याय, भाग, हार, विधा, प्रकार तथा भेद, छेद और भंग - ये सब एक ही अर्थ के वाचक हैं / पर्याय के भेद : जैन ग्रन्थों में पर्याय के भेदों का वर्णन अनेक प्रकार से किया गया है / यथा - (क) “द्विधा पर्याया द्रव्यपर्याया गुणपर्यायाश्च / "219 द्रव्यपर्याय और गुणपर्याय के भेद से पर्याय दो प्रकार की हैं / (ख) "यः पर्यायः सः द्विविधः क्रमभावी सहभावी चेति / "22 / जो पर्याय है वह दो प्रकार की है - क्रमभावी और सहभावी / (ग) “पर्यायस्ते द्वधा स्वभावविभावपर्यायभेदात् / "23 पर्याय दो प्रकार की हैं - स्वभावपर्याय और विभावपर्याय /
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy