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________________ 147 जैन दर्शन में पर्याय (घ) “अथवा द्वितीयप्रकारेणार्थव्यञ्जनपर्यायरूपेण द्विधा पर्याया भवन्ति / "24 अर्थपर्याय व व्यञ्जनपर्याय के भेद से भी पर्याय दो प्रकार की हैं / (ङ) “स्वभावपर्यायस्तावत् द्विप्रकारेणोच्यते कारणशुद्धपर्याय और कार्यशुद्धपर्याय चेति / "25 (च) “सुहमा अवायविसया खणखइणो अत्थपज्जया दिट्ठा / वंजणपज्जाया पुण थूला गिरगोयरा चिरविवत्था // "26 पर्याय के दो भेद हैं - अर्थपर्याय और व्यञ्जनपर्याय / इनमें अर्थपर्याय अति सूक्ष्म हैं / अर्थात् अवाय (ज्ञान) विषयक हैं, इसलिए शब्द से नहीं कही जा सकती हैं और प्रतिक्षण बदलती रहती हैं, परन्तु व्यञ्जनपर्याय स्थूल हैं, शब्दगोचर हैं अर्थात् शब्दों से व्यक्त की जा सकती हैं और चिरस्थायी हैं। (छ) “सद्दो बंधो सुहुमो थूलो संठाणभेदतमछाया / उज्जोदादवसहिया पुग्गलदव्वस्स पज्जाया // "27 अर्थात् पुद्गल द्रव्य के शब्द, बंध, सूक्ष्म, संस्थान, भेद, तम, छाया, उद्योत और आताप - इन सहित विभाव व्यञ्जनपर्यायें होती हैं / संदर्भ 1. तत्त्वार्थसूत्र, 5/30 प्रवचनसार, गाथा-१०१ 3. वही, गाथा-१०२ 4. वही, गाथा-१०३ 5. आप्तमीमांसा, श्लोक-५९ 6. वही, श्लोक-६० 7. मीमांसाश्लोकवार्तिक, श्लोक-२१ 8. वही, श्लोक-२२ 9. वही, श्लोक-२३ 10. तत्त्वार्थवार्तिकम् 1/33/1 11. आलापपद्धति-६ 12. सर्वार्थसिद्धि-१/३३/१४१/१ 13. राजवार्तिकम्-१/२९/४/८९/४ 14. पंचाध्यायी, पूर्वार्द्ध-२६, 117 15. तत्त्वार्थसूत्र-५/४२
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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