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________________ जैन दर्शन में पर्याय 145 "हेमार्थिनस्तु माध्यस्थ्यं तस्माद्वस्तु त्रयात्मकम् / नोत्पादस्थितिभंगानामभावे स्यान्मतित्रयम् / / "नाशेन विना शोको नोत्पादेन विना सुखम् / स्थित्वा विना न माध्यस्थ्यं तेन सामान्यनित्यता // "9 अर्थात् जब सुवर्ण के प्याले को तोड़कर, उसकी माला बनाई जाती है, तब जिसको प्याले की आवश्यकता है, उसको शोक होता है, जिसे माला की आवश्यकता है, उसे हर्ष होता है और जिसे सुवर्ण की आवश्यकता है, उसे न हर्ष होता है और न शोक, अतः वस्तु त्रयात्मक है / यदि उत्पाद, स्थिति और व्यय न होते तो तीन व्यक्तियों के तीन प्रकार के भाव न होते, क्योंकि प्याले के नाश के बिना प्याले की आवश्यकता वाले को शोक नहीं हो सकता / माला के उत्पाद के बिना माला की आवश्यकता वाले को हर्ष नहीं हो सकता और सुवर्ण की स्थिरता के बिना सुवर्ण इच्छुक का प्याले के विनाश और माला के उत्पाद में माध्यस्थ नहीं रह सकता, अतः वस्तु सामान्य से नित्य है, पर्याय रूप से अनित्य है / इस प्रकार यह सुस्पष्ट है कि जैनदर्शन में द्रव्य एक है, और वह प्रतिसमय उत्पाद और ध्रौव्यस्वरूप है। अतएव वह द्रव्यदृष्टि से नित्य है और पर्यायदृष्टि से अनित्य है / पर्याय का निरुक्त्यर्थ : (क) “परि समन्तादायः पर्यायः / 10 अर्थात् जो सर्व ओर से भेद को प्राप्त करे, वह पर्याय है / (ख) “स्वभावविभावरूपतया याति पर्येति परिणमतीति पर्याय इति पर्यायस्य व्युत्पत्तिः / " अर्थात् जो स्वभाव-विभाव रूप से गमन करती है, परिणमन करती है, वह पर्याय है। (ग) “पर्यायो विशेषोऽपवादो व्यावृत्तिरित्यर्थः / 12 अर्थात् पर्याय का अर्थ - विशेष, अपवाद और व्यावृत्ति है / (घ) "तस्य मिथो भवनं प्रति विरोध्याविरोधिनां धर्माणामुपात्तानुपात्तहेतुकानां शब्दान्तरात्मलाभनिमित्तत्वाद् अपितु व्यवहारविषयोऽवस्थाविशेषः पर्यायः / "13 अर्थात् - स्वाभाविक या नैमित्तिक विरोधी या अविरोधी धर्मों में अमुक शब्द व्यवहार के लिए विवक्षित द्रव्य की अवस्था विशेष को पर्याय कहते हैं। "पर्यायाणामेतद्धर्म यत्त्वंशकल्पनं द्रव्यं / स च परिणामोऽवस्था तेषामेव (गुणानामेव)"१४ अर्थात् द्रव्य में जो अंश कल्पना की जाती है यही तो पर्यायों का स्वरूप है / परिणमन गुणों की ही अवस्था है / अर्थात् गुणों की ही प्रतिसमय होने वाली अवस्था का नाम पर्याय है।
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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