________________ 12 द्रव्य, गुण और पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध : सिद्धसेन दिवाकरकृत 'सन्मति-प्रकरण' के विशेष सन्दर्भ में श्रीप्रकाश पाण्डेय सिद्धसेन दिवाकर (४वीं-५वीं शती) द्वारा विरचित 'सन्मति-प्रकरण' जैन दार्शनिक जगत् का एक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ है जो श्वेताम्बर एवं दिगंबर दोनों सम्प्रदायों में समान रूप से माना जाता है। आचार्य सिद्धसेन की इस प्राकृत रचना में नयों का विशुद्ध विवेचन, तर्क के आधार पर पंचज्ञान की परिचर्चा, प्रतिपक्षी दर्शन का भी सापेक्ष भूमिका पर समर्थन तथा सम्यक्त्वस्पर्शी अनेकान्त का युक्तिपुरस्सर प्रतिपादन इस ग्रन्थ का प्रमुख प्रतिपाद्य है / सन्मति-प्रकरण में कुल तीन कांड और 167 गाथायें हैं / प्रथम नयकांड में 54, द्वितीय जीवकांड में 46 तथा तृतीय शेयकांड में कुल 69 गाथायें हैं / प्रथम नयकांड में नयवाद की व्यापक चर्चा उनके भेदों सहित की गयी है। द्वितीय जीवकांड में ज्ञान तथा तृतीय शेयकांड में ज्ञेय की मीमांसा की गयी है। सन्मति की भाषा प्राकृत (महाराष्ट्री) तथा शैली पद्यमय है / सन्मति-प्रकरण के मुख्य विवेच्य नयवाद, द्रव्य-गुण-पर्याय, अनेकान्तवाद, प्रमाण, नय-निक्षेप सम्बन्ध योजना आदि विषय हैं। चूंकि हमारा अभीष्ट द्रव्य, गुण और पर्याय का पारस्परिक सम्बन्ध है, अतः सर्वप्रथम हम द्रव्य, गुण, पर्याय का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके पारम्परिक सम्बन्धों की चर्चा करेंगे / द्रव्य का स्वरूप और प्रकार द्रव्य की अवधारणा जैन तत्त्वमीमांसा का एक विशिष्ट अंग है / जो अस्तित्ववान है, वह द्रव्य कहलाता है / 'T' धातु के साथ 'य' प्रत्यय के योग से निष्पन्न द्रव्य शब्द का अर्थ है - योग्य / जो भिन्न-भिन्न अवस्थाओं को प्राप्त हुआ, प्राप्त होता है, और प्राप्त होगा, वह द्रव्य है / जैनेन्द्र व्याकरण के अनुसार द्रव्य शब्द इवार्थक निपात है 'द्रव्यं भव्ये' इस जैनेन्द्र व्याकरण के सूत्रानुसार 'द्रु' की तरह जो हो वह द्रव्य है / जिस प्रकार बिना गांठ की लकड़ी बढ़ई आदि के निमित्त से कुर्सी आदि अनेक आकारों को प्राप्त होती है, उसी प्रकार द्रव्य भी बाह्य और आभ्यन्तर कारणों से उन-उन पर्यायों को प्राप्त