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________________ 112 जैन धर्म में पर्याय की अवधारणा संदर्भ 1. पंचास्तिकाय संग्रह,गाथा-१० 2. Apte's Sanskrit English Dictionary. Page-576 3. दवियादि गच्छदि ताई ताई सव्भाव पज्जयाई जं / दवियं तं भण्णंते अणण्णभूदं तु सत्तादौ // पंचास्किासंग्रद्ध, गाथा - 9 4. जैनेन्द्र व्याकरण 4/1/158 5. न्यायविनिश्चय विवरण; भाग-१ पृष्ठ-४३४ 6. तत्त्वार्थवार्तिक 5/2/436 7. गुणपर्ययवत् द्रव्यं ते सहक्रमवृत्तयः / 8. विज्ञानव्यक्तिशक्त्याद्याभेदाभेदो रसादिवत् // न्यायविनिश्चय 1/115 न्यायविनिश्चयविवरण; भाग-१; पृष्ठ 428-29 10. गुण्यते पृथक् क्रियते द्रव्यं द्रव्याद्यैस्ते गुणाः / आलाप-पद्धति - 93 11. गुणवत् द्रव्यं उत्पादव्ययध्रौव्यादयो गुणाः / न्यायविनिश्चय; 1/117 पूर्वार्द्ध 12. पंचास्तिकाय समयव्याख्या टीका; गाथा-१० 13. अस्तित्वं हि किल द्रव्यस्य स्वभावः / .... तस्तु द्रव्यान्तराणामिव द्रव्यगुणपर्यायाणां न प्रत्येक परिसमाप्यते / यतो हि परस्परसाधितसिद्धि युक्तत्वात् तेषामस्तित्वमेकमेव / प्रवचनसार-तत्त्वप्रदीपिका टीका; गाथा-९६ 14. स्वद्रव्य चतुष्टयापेक्षया परस्पर गुणाः स्वभावा भवन्ति / आलाप-पद्धति; सूज 119 15. द्रव्याण्यपि भवन्ति / वही, सूज - 120 16. पंचास्तिकाय समयव्याख्या टीका; गाथा-१३ 17. पंचास्तिकाय संग्रह, गाथ-१३ 18. वही; गाथा-५० 19. वही; गाथा-५१ 20. पूर्वापरपर्याययोः साधारणमेकं द्रव्यम् / द्रवति तास्तान्पर्यायान्गच्छतीति व्युत्पत्त्या त्रिकालानुयायी यो वस्त्वंशस्तदूर्ध्वताः - सामान्यमिति अभिधीयते / स्याद्वाद रत्नाकरः पृष्ठ-७३२ परापरविवर्तव्यापी द्रव्यमूर्ध्वता सामान्यं मृदिव स्थासादिषु / परीक्षा मुख सूत्र 4/6 21. एकस्मिन् द्रव्ये क्रमभाविनः परिणाम: पर्यायः आत्मनि हर्षविषादादिवत् / वही; सूत्र-४/९१ 22. तत्त्वार्थश्लोकवार्तिक; पृष्ठ-३९४ 23. आप्तमीमांसा-५७ 24. हेतु बिन्दु टीका पृष्ठ-१०५ से न्यायविनिश्चयविवरण; भाग-१ पृष्ठ-४४६ पर उद्धृत / 25. वही; पृष्ठ 447 पर उद्धृत / 26. प्रमाणवार्तिक 1/72-74
SR No.032766
Book TitleJain Dharm me Paryaya Ki Avdharna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSiddheshwar Bhatt, Jitendra B Shah
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year2017
Total Pages214
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size18 MB
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