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________________ 52] __ काव्यशिक्षा पापान्तक" किरातें' सो (सौ)वीरें औसीर वोकाण; उत्तरापथ०- गूर्जर सिन्धु केकाण नेपाल टक्क तुरष्क ताइकारें बर्बर जर्जर कीर काश्मीर हिमालय लोहपुरुष श्रीराष्ट्र; दक्षिणपथ०- सिङ्घल चौड कौश(र)ल पाण्डुण्ड्य) अन्ध्र विन्ध्य कर्णाट द्रविड श्रीपर्वत विदर्भ धाराउ लाजी" ताप्ती[तट] महाराष्ट्र आभीर नर्मदातट 5 दी(द्वी)पदेशाश्चेति / [शतम्-] श्रीआदिनाथस्य पुत्राणां / अष्टोत्तरशतं व्याधीनाम्, तद्यथा-स्वरभेद स्वेद कर्णमूल शूल श्वास ज्वर भगन्दर कुष्ट कोष्ट एकाहिक द्वयाहिक त्र्याहिक चातुर्हिक वेलावर नित्यज्वर भूतज्वर दाहज्वर पीनस आमाश्रय दद्रु ग्रहणि(णी) छईि तृष्णा भ्रमि मूर्छा पाद वल्मीक 10 अन्त्रवृद्धि गृद्धसी पाहणी जृम्भाहिका उपजिह्वा प्रतिजिह्वा नाशा सिराशोणित इन्द्रलुप्तक कामग्रह उन्माद ज्वाला गर्दभा लूता अर्बुद व्याधेयी गजचर्म प्लीहोदर पामा स्फोट वलित महुलि क्लीव्य उप्पीहास पटल नील काच शुक्रार्म विसर्प तिमिरा खस खसर चलन कन्द रुधिरातीसार विकार उसपतिवात आमवात रविगिवात संवर्तनवात विशूचिका विचर्चिका अपचरिका गलशौण्डिका कक्षा वरालिका कोलेयक तिलपुष्पक 15 वारुणक अपवाहक गण्डोलक अप्पुरक सुण्ट कोसण्ट ग्रीवाग्रह कटीग्रह वालोटप्रभृतयः। षष्टिः सहस्राणि पुत्राणां सगरचक्रवर्तिनः / . अष्टाशीतिः सहस्राणि वालिखिल्यप्रभृतिमहर्षिणाम् / चतुरशीतिलक्षाणि जीवयोनीनाम्।। [ इत्येकादिपदार्थगणनाः ] 30 समूहवाचकाः शब्दाः राजन्यानां समूहो राजन्यकम् / गणिकानां च गाणिक्यम् / एवमौष्ट्रिकम् / औरभ्रिकम्, आजिकम्, वायसम्, काकम्, भैक्षम् , यौवतम् / जैनानां, संघाज्ञा द्विजानां 14. अयं देशो दक्षिणापथे गण्यते / 15-17. अमी देशाः पश्चिमदेशेषु वर्तन्ते / प्राय औसीरोऽपि तत्रैव / 18. अन्यत्र 'तायक' इति 'ताजिक' इति वा प्रयोगो दृश्यते। 19. अन्यत्र 'वर्जर' 'वज्रल' 'वजूर' 'वजुर' इति रूपान्तराणि दृश्यन्ते। . 20-21 अन्यत्र 'धाराधर' 'कांजी' 'विराट उरल कांजी,' 'धरानंग उरल जीमूत,' 'वैराट धारउर लाज्जा-धारउर लाजी,' 'विराट ओरल' इति बहुविधानि नामान्तराणि प्रयुक्तानि / 22. अस्यां गधनायां देशसङ्ख्या पञ्चदशोना दृश्यते /
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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