________________ ध्रुव 130) काव्यशिक्षा लोला जिह्वा-कमलयोः कलिः कलह-शूरयोः / लत्रि०- तरलं चञ्चले षिङ्गे हारमध्यमणावपि // 219 // बहुलः कृष्णपक्षेऽनौ शितौ च बहुला गवि / फेनिलः स्यादरिष्टेऽपि फेनिलं बदरीफले // 220 // ; लच० - मदकलः स्यान्मत्तेभे मदेनाव्यक्तवाचि च / कुतूहलं कौतुके स्यात् प्रशस्तेऽपि कुतूहलम् // 221 // लप०- कृपीटपालमिच्छन्ति केनिपात समुद्रयोः / वद्वि० --- भवः संसार-सत्ता-ऽऽप्ति-श्रेयः-शङ्कर-जन्मसु // 222 / / ध्रुवः कीले शिवे शङ्को वसौ योगे बटे मुनौ / 10 वत्रि०- प्रभवो जन्ममूले स्याजन्मभूमौ पराक्रमे // 223 // वच - जीवजीवश्वकोरे स्याद् द्रुम-पक्ष(क्षि)विशेषयोः / वप०- अ(आ)शितम्भवमन्नाचे तृप्तौ चाप्याशितम्भवः // 224 // शद्वि०- वशमायत्ततायां स्याद् वशमिच्छा-प्रभुत्वयोः / कुशो रामसुते दर्भे निशा रात्रि-हरिद्रयोः // 225 // 15 शत्रि०- बाल(लि)शः शावके मूर्ख लोमशो लोमसंयुते / उड्डीशो ग्रन्थभेदे स्यादुड्डीशश्चन्द्रिकापतौ // 226 // शच--- अपदेशः स्मृतौ लक्षे(क्ष्ये) निमित्त-व्याजयोरपि / जीवितेशो यमे कान्ते जीवातौ जीविताधिपे // 227 // पद्वि०- वृषः स्याद् वासके धर्मे सौरभेये च शुक्रले / दोषः स्याद् दूषणे पापे दोषा रात्रौ भुजेऽपि च // 228 // ऋषिदे वशिष्ठादौ दीधितावपि पठ्यते / उषा बाणसुता-रात्र्योरुषः कामिनि गुग्गले // 229 // 20 पारपापा 5 जा५111 5 / " " " 35 पच०- अनिमिषः सुरे मत्स्येऽप्यनुकर्षोऽनुकर्षणे / परिघोषो निनादे स्यादवाच्ये जलदध्वनौ // 231 //