________________ [ 129 10 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः / पा(प)त्र स्याद् वाहने पणे पक्षे च शरपक्षिणाम् / चक्रो गणे चक्रवाके चक्रं सैन्य-रथाङ्गयोः // 208 // गिरिगिरियके गीर्णो' क्रीडागु(गे)ण्ड(ण्डु)क-शैलयोः / अमरस्त्रिदशेऽप्यस्थिसंहारे कुलिशद्रुमे // 209 // शम्बरं सलिले चित्रे बौद्ध-व्रतविशेषयोः / विदुरो नागरे धीरे कौरवाणां च मन्त्रिणि // 210 // मथु(धु)रा शतपुष्पायां बन्धुरा पु(प)ण्ययोषिति / कुब्जरोऽनेकपे केशे धातु(त)क्यामपि कुजरा // 211 // पुष्करं पङ्कजे व्योम्नि पयः-करिकराग्रयोः / विहारो भ्रमणे स्कन्धे लीलायां सुगतालये // 212 // करीरः कलशे वृक्षभेदे वंशाङ्कुरेऽपि च / भवेत् परिकरो वाते पर्यङ्क-परिवारयोः // 213 // दिगम्बरः स्यात् क्षपणे नग्ने तमसि शङ्करे / बलभद्रो रो(रौ)हिणेयो बलभद्रा कुमारिका // 214 // रप० -- पांशुचामर इत्येष दूर्वाञ्चिततटीभुवि / पीतकावेरमिच्छन्ति कुङ्कुमे पित्तलेऽपि च // 215 // लद्वि०- बलं गन्धरसे रूपे स्थामनि' स्थौल्य-सैन्ययोः / बलो हलायुधे दैत्यभेदे बलिनि वायसे // 216 // मलं किट्टे पुरीषे च पापे च कृपणे मतः / स्थालं भाजनभेदेऽपि स्थाली स्यात् पाटलोखयोः // 217 // बालः कचे शिशौ मूर्ख हीबेरेऽश्वेभपुच्छयोः / शुलं प्रहरणे मृत्यौ केतने रोग-योगयोः // 218 // 1. प्रतौ तु 'गिरिः गीर्णौ गिरियके' इति पाठः / 2. प्रतौ तु 'स्थाम्नि' इति पाठः / 3. प्रतौ तु 'बलिनि वासयोः' इति पाठः / रच० 30