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________________ [131 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः / सद्वि०- रसो गन्धरसे स्वादे तिक्तादौ विष-रागयोः / शृङ्गारादौ द्रवे वीर्ये देहधात्वम्बुपारदे // 232 // सत्रि०- अलसः पादरोगे स्यात् क्रियामन्दे द्रुमान्तरे / तमोऽन्धकारे स्वर्भानौ तमः शोके गुणान्तरे // 233 // सच०-- भवेद् घनरसः सान्द्रे निर्यासे मोरटेऽप्सु च / कपूरे पीलुपयों च सम्यक् सिद्धरसेऽपि च // 234 // सप०-- हिङ्गनिर्यास इत्येष निम्बे हिङ्गुरसेऽपि च / हद्वि०– सहो बले सहा मुद्गपर्ध्या तु नखभेषजे // 235 // सहदेवाकुमायौं तु सहः क्षान्ते सहा भुवि / / ग्रहो ग्रहेऽवहारे च नाहो बन्धन-कूटयोः // 236 // मोहमिच्छन्ति मूर्छायामविद्यायां च सूरयः / / मही भूमौ मही नद्यां मह उत्सव-तेजसोः // 237 // कुहूः स्यात् कोकिलालापे नष्टेन्दुकल-दर्शयोः / हत्रि० - पटहस्तु समारम्भे आनके पटहं मतम् // 238 / / कलहः खड्गकोशे स्याद् भण्डने युद्ध-राढयोः / वैदेही रोचना-सीता-वणिक्स्त्री-पिप्पलीष्वपि // 239 // अवग्रह इति ख्यातो वृष्टिरोधे गजालिके / परिग्रहः परिजने पत्न्यां स्वीकार-मूलयोः // 240 // उपनाहो व्रणे लेपपिण्डे वीणानिबन्धने / हप०- प्रपितामह इत्येष विधौ पितृपितामहे // 241 // क्षद्वि०- अक्षः कर्षे तुषे चक्रे शकट व्यवहारयोः / दक्षः पटौ हरवृषे ताम्रचूडे प्रजापतौ // 242 // क्षत्रि० - अध्यक्षोऽधिकृते प्रोक्तः प्रत्यक्षेऽध्यक्षमिष्यते / आरक्षं रक्षणीये स्यात् शीर्षे मर्मणि दन्तिनाम् // 243 //
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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