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________________ 124] काव्यशिक्षा पटुः पटोलपत्रेऽपि पट्टी ललाटभूषणे / रिष्टं क्षेम-शुभाभाव-कृपाणेषु निगद्यते // 145 // व्युष्टं दिने प्रभाते च फले पर्युषितेऽपि च / [टत्रि०]- अवटः स्यात् खिले गर्ने कूपे कुहकजीविनि // 146 // करटो गजगण्डे स्यात् पिच्चटो नेत्ररोगके / कुक्कुटस्ताम्रचूडे स्यात् कुकुभेऽग्निकणेऽपि च // 147 // कर्कटः करणे स्त्रीणां राशिभेद-कुलीरयोः / परीष्टिः परिचर्यायां प्राकाम्येऽपि गवेषणे // 148 // मर्कटस्तूर्णनाभेऽपि कपौ स्त्रीकरणेऽपि च / 10 [ टच०]- श्रुतिकटः प्राञ्चलोहे प्रायश्चित्त-भुजङ्गयोः // 149 // स्याद् गाढमुष्टिः कृपाणे कृपणादिषु चेष्यते / उद्वि०- कठः स्वरे ऋचां भेदे कुण्ठोऽकर्मण्य-मूर्खयोः // 150 // कुष्ठ रोगे सुगन्धे च गोष्ठं गोस्थानके मतम् / ज्येष्ठं श्रेष्ठेऽतिवृद्धे च ज्येष्ठो मासान्तरेऽपि च // 151 // 15 [ उत्रि०]-कमठः कच्छपे भाण्डभेदे च कमठं मतम् / कनिष्ठोऽल्पेऽनुजे यूनि कनिष्ठा दुर्बलाङ्गुलौ // 152 // दन्तशठः स्याज्जम्बीरे कपित्थे कर्मरङ्गके / हारकण्ठः परभृते हारान्वितगलेऽपि च // 153 // कालकण्ठस्तु दात्यूहे कलविङ्गे च खञ्जने / [इति] ठान्तवर्गः। इद्रिः गुडः स्याद् गोलके हस्तिसन्नाहेक्षुविकारयोः // 154 // जडो मूर्खे हिमग्रस्ते ताडस्ताडन-घोषयोः / गण्डः कपोले पिटके योगभेदे च गण्डके // 155 // दण्डो यमे मानभेदे लगुडे दम-सैन्ययोः / भाण्ड भूषणमात्रेऽपि भाण्डं मूलवणिग्धने // 156 // उच०
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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