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________________ 10 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः। [123 व्रजो गोष्ठा-ऽध्व-वृन्देषु निजमात्मीय-नित्ययोः / ध्वजं चिह्न पताकायां ध्वजः सौण्डिक-सेफयोः // 133 // द्विजो विप्रेऽण्डजे दन्ते वाजो निस्वन-पक्षयोः / वाजं जले मुनौ वाजो व्याजः शाठ्या-ऽपदेशयोः // 134 // अब्जो धन्वन्तरौ चन्द्रे निचुले शङ्ख-पद्मयोः / आजिः समावनौ युद्धे राजिः स्यात् पङ्क्ति-रेखयोः // 135 // गजा खनौ सुरागेहे सजः प्रजापतौ हरे / [जत्रि०]- करजस्तु करजे स्याज्जलजं शङ्ख-पद्मयोः // 136 // वनजो मुस्तके पट्टे काम्बोजो वारणे मतः / / [जच०]- जघन्यजोऽनुजे शूढ़े भारद्वाजो मुनौ स्मृतः // 137 // द्विजराजः शशधरे सौपर्थेऽनन्तभोगिनि / धर्मराजो यमे प्रोक्तो धर्मराजो युधिष्ठिरे // 138 // नरराजः कुबेरेऽपि सार्वभू(भौ)मे सुधाकरे / भृङ्गराजस्तु मधुपे ग्रहराजो रवौ विधौ // 139 // [झद्वि०]- झञ्झा ध्वनिविशेषेऽपि झझा स्याजलवर्षणे / [_कम् ] - ज्ञो विरिञ्चे तथा बुद्धे(धे) शद्वि०- प्रज्ञा बुद्धौ तु पण्डिते // 14 // संज्ञा नामनि गायत्र्यां चेतनायां रविस्त्रियाम् / [ज्ञत्रि०]- सर्वज्ञस्तीर्थपे बुद्धे शङ्करे परिकीर्तितः // 141 // दैवज्ञो गणकेऽपि स्यात् कृतज्ञः कुक्कुरेऽपि च / कटः श्रोणी क्रियाकारे किल(लि)जेऽतिशये शवे // 142 // समये गजगण्हे च पटः पियालपादपे / लटः प्रमाद-वचनदोषयोरप्युदाहृतः // 143 // स्फुटो व्यक्ते प्रफुल्ले च कूटं यन्त्रेऽनृते गिरौ / वाटो वृतौ च मार्गे च वाटी तु गृहनिष्कुटे // 144 // 25 टद्वि०
SR No.032755
Book TitleKavyashiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVinaychandrasuri, Hariprasad G Shastri
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1964
Total Pages228
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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