________________ [117 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः / धावनं तु गतौ शौचे पद्मिनी योषिदन्तरे / विटपः पल्लवे स्तम्बे विस्तारे षिग-शाखयोः // 73 // वृषभः स्यादादिजिने वृष-पुङ्गवयोरपि / गौतमो गणभृद्भेदे शाक्यसिंहर्षिभेदयोः // 74 / / सुषीमः शिशिरे रम्ये सत्तमः श्रेष्ठ-पूज्ययोः / विदुरो नागरे धीरे धृतराष्ट्रानुजेऽपि च / अङ्गलिः करशाखायां कर्णिकायां गजस्य च // 75 // इति ब्यक्षरः काण्डस्तृतीयः / (4) चतुरक्षरकाण्डः / अलमकः पिके भृङ्गे मधुके पद्मकेसरे / बलाहको गिरौ मेघे दैत्य-नागविशेषयोः // 76 // वृन्दारकः सुरे श्रेष्ठे मनोज्ञे च [प्रकीर्तितः / नियामकः कर्णधारे पोतवाहे नियन्तरि // 77 // विनायकस्तु हेरम्बे तार्थे विघ्ने जिने गुरौ / भट्टारकः सुरे राज्ञि कथितश्च तपोधने // 78 // दासेरकः स्यात् करभे दासीपुत्रे च धीवरे / कुकवाकुस्ताम्रचूडे मयूर-कृकलासयोः // 79 // गोमेदकं पीतरत्ने काकोले पत्रकेऽपि च / सहकारे गणधरे पुण्डरीकोऽग्निदिग्गजे // 80 // पुण्डरीकं सिताम्भोजे राजिलाहौ गजज्वरे / कोशकारान्तरे व्याघे वलाहकोऽम्बुदे गिरौ // 81 // दैत्ये नागे च निर्दिष्टो भयानकस्तु भीषणे / महाशङ्खो निधिभेदे संख्याभेदे नरास्थनि // 82 // शिलीमुखोऽलौ बाणे चापवर्गस्त्याग-मोक्षयोः / संप्रयोगो निधुवने सम्बन्धे कार्मणेऽपि च // 83 //