________________ 116 ] काव्यशिक्षा वर्णानां स्पष्टतादौ च योगिनामासनादिषु / हृषीके साधकतमे ववादौ च कृतावपि // 60 // कङ्कणं करभूषासु कल्याणं हेम्नि मङ्गले / काकिणी मानदण्डे स्यात् तुरीयांशे पणस्य च // 61 // तरुणः कुब्जवृक्षे स्यादेरण्डे यूनि नूतने / निर्वाणं मोक्ष-निवृत्योर्विध्याते करिमज्जने // 62 // पक्षिणी पूर्णिमा-खग्योः शाकिनी-रात्रिभेदयोः / श्रवणो नक्षत्रभेदे श्रवणं श्रवसि श्रुतौ // 63 // सुषेणो विष्णु-सुग्रीववैद्ययोः करमर्दके / हरिणौ पाण्डु-सारङ्गौ सुपर्णः कृतमालके // 64 // अजितस्तीर्थकृढ़ेदे बुद्धे विष्णावनिर्जिते / अनन्तं खे निरवधावनन्तस्तीर्थकृद्भिदि // 65 // अथायतिः स्यात् प्रभावोत्तरकालसमागमे / आसत्तिः संगमे लाभेऽप्यापत्तिः प्राप्ति-दोषयोः // 66 // किरातः स्यादल्पतनौ भूनिम्ब-म्लेच्छयोरपि / गोपतिः शङ्करे षण्ढे नृपतौ त्रिदशाधिपे // 67 / / सहस्रकिरणे चापि जगती छन्दसि क्षितौ / निशान्तं सदने शान्ते प्रभातेऽपि निगद्यते // 68 // पर्वतो गिरि-देवोः पक्षतिः प्रतिपत्तिथौ / वसतिः स्यादवस्थाने निशायां सदनेऽपि च // 69 / / विनतः प्रणते भुग्ने विनता पिटिकाभिदि / सिद्धार्थः सर्षपे शाक्यसिंहेऽन्त्यजिनवप्तरि // 70 // सम्बाधः सङ्कटे योनौ अर्जुनः पार्थ हैहये / कुण्डली वरुणे सर्षे मयूरे कुण्डलान्विते // 11 // दर्शनं दर्पणे धर्मोपलब्ध्योर्बुद्धि-शास्त्रयोः / स्वप्न-लोचनयोश्चापि दशनं वर्म-दंशयोः // 72 // 20 35