________________ [115 अनेकार्थशब्दसंग्रहपरिच्छेदः / बालकोऽज्ञे शिशौ केशे वाजि-वारणवालधौ / अङ्गुलीयकः-हीबेर-पारिहार्येषु बालकम् // 47 // पिनाको हरकोदण्डे पांशुवर्ष-त्रिशूलयोः / मोदको हर्षके ज्ञेयः खाद्यभेदे च मोदकम् // 48 // रूपकं नाटके धूर्ते काव्यालङ्करणेऽपि च / कोशिको नकुले ब्यालग्राहे गुग्गुल-शुक्रयोः // 49 // नालीकं पद्मखण्डेऽब्जे नालीकः शर-शल्ययोः / नन्दको हरिखड्गे च हर्षके कुलपालके // 50 // तूलिका कथिता लेख्यकूर्चिका-तूलशय्ययोः / ऊर्मिका त्वङ्गुलीये स्याद् वस्त्रभङ्ग-तरङ्गयोः // 51 // अलर्को धवलार्के स्याद् योगोन्मादितशुन्यपि / आन्तको रुजि शङ्कायां सन्तापे मुरजध्वनी // 52 // कुलकः कुलप्रधाने वल्मीके काकतिन्दुके / चित्रकस्तु चित्रकाये द्रुमौषधिविशेषयोः // 53 // पताकाऽङ्के ध्वजे केतौ सौभाग्ये नाटकांशके / भूमिका तु रचनायां रूपान्तरपरिग्रहे // 54 // स्वस्तिको मङ्गलद्रव्ये गृहभेद-चतुष्कयोः / दुर्मुखो मुखरे नागराजे वाजिनि वानरे // 55 // जातीफले नरश्रेष्ठे पुन्नागः पादपान्तरे / कक्वस्तु तनुत्राणे पटहे नन्दिपादपे // 56 // कुक्कुटः कुक्कुभे ताम्रचूडे वह्निकणेऽपि च / प्रतापिनि प्रचण्डः स्यात् प्रकाण्डः स्तम्ब शस्तयोः // 57 / / आषाढो मलयगिरी व्रतिरण्डे च मासि च / शच्यां निर्गुण्ड्यामिन्द्राणी ललनाकरणेऽपि च // 58 // करुणा तु कृपायां स्यात् करणं क्षेत्र गात्रयोः / गीताङ्गहारसंवेशभित्सु कायस्थसंहतौ // 59 //