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________________ 205] द्वितीयो गुल्मकाण्डः / नागदन्त्यां हस्तिदन्ती वारुणी गजचिभिटी / / 202 // मृगादनी मृगेर्वारुमंगाक्षी तु गजस्फुटा / श्वेतपुष्पी मधुपुष्पी पर्वपुत्री विषौषधी // 203 // __नागस्य दन्ती नागदन्ती, तस्याम् / हस्तिनो दन्ती हस्तिदन्ती / वरुणस्येयं वारुणी, “तस्येदम्" [ सिद्ध० 6. 3. 160] इत्यण् / गजस्य चिर्भिटीव 5 गजचिभिंटी // 202 // मृगैरद्यते मृगादनी, “अनट्” [सिद्ध 05. 1.124 ] इत्यनट् / मृगस्य ईर्वारुरिव मृगेर्वारुः / मृगमक्ष्णोति मृगाक्षी। गजानां स्फुटा गजस्फुटा / श्वेतानि पुष्पाण्यस्याः श्वेतपुष्पी / मधूनि पुष्पाण्यस्याः मधुपुष्पी, "असत्काण्डप्रान्त-" [सिद्ध० 2. 4. 56] इति ङीः / पर्वाणां पुत्रीव पर्वपुत्री / विषस्य ओषधी 10 विषौषधी / दन्तीविशेषोऽयम् // 203 // अपामार्गे त्वधाशैल्या किणिही खरमञ्जरी / धामार्गवः शैखरिको वशिरः कपिपिप्पली // 204 // कपिवल्ली मर्कटिका शिखर्याघाट-दुर्घहो / प्रत्यकपुष्पी पत्रपुष्पी केशवल्ली मयूरकः // 20 // 15 अपकृष्टः आ–समन्तान्मार्गोऽस्य अपामार्गः, तत्र / अधः शल्यमस्या अधःशल्या / किणिनो जिहीते-याति किणिही, स्पर्शात् किणोत्पादनात् / खरा मञ्जर्योऽस्य खरमञ्जरी / धाम इयर्ति धामार्गवः, "कैरव-भैरव-" [हैमोणादिसू० 519 ] इत्यवे निपात्यते / “अधर्म मार्ग वाति न धाम अर्कति वेति [अधामार्गवः], पृषोदरादित्वात्" इति क्षीरस्वामीति / अयमपि द्वयर्थे अधा- 20 मार्गवोऽपामार्गः कोशातकी च / शिखरे भवः शैखरिकः, “भवे" [ सिद्ध०. 6.3. 123 ] इति इकण् / “वशक् कान्तौ” उश्यते वशिरः, मध्यतालव्यः, “स्थविर-पिठिर-" [हैमोणादिसू० 417] इतीरे निपात्यते। कपीनां पिप्पली कपिपिप्पली // 204 // कपीनां वल्ली कपिवल्ली / मर्किः सौत्रः, मकति मर्कटी, “दिव्यवि." [हैमोणादिसू० 142] इत्यटः, स्वार्थिके के मर्कटिका; मर्कटाः सन्त्यस्यामिति 35 1 ०णी चापि चि° नि० // 2 ०क्षी भुजगस्फटा / *वेतपुष्पा मधुपुष्पा पर्वपुष्पा विषौषधिः // 203 // नि० // ३०शल्यः नि० //
SR No.032753
Book TitleNighantu Shesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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