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________________ 110 10 सटीके निघण्दुशेषे श्लो० १९६वल्लभा अश्ववल्लभा / “विड आक्रोशे' वेडति विड्यते वा विडाली , “कुलिपिलि-" [हैमोणादिसू० 476] इति किदालः, के विडालिका / वृक्ष इव पर्णान्यस्या वृक्षपर्णी / आह च विदारिका मता शुक्ला स्वादुकन्दा सृगालिका / वृक्षकन्दा विदारी च वृक्षवल्ली विडालिका // ] इति / एतस्या लोके 'विदारि' इति प्रसिद्धिः / ____महाश्वेताऽपरा तु सा // 196 // क्षीरशुक्ला क्षीरकन्दा क्षीरवल्ली पयस्विनी / ऋक्षगन्धेक्षुगन्धेक्षुवल्ली क्षीरविदारिका // 197 // 'तुः' पुनरर्थे / 'सा' विदारी 'अपरा' अन्या महती चासौ श्वेता च महाश्वेता // 196 // क्षीरण शुक्ला क्षीरशुक्ला / क्षीरप्रधानः कन्दोऽस्याः क्षीरकन्दा / क्षीरस्य वल्ली क्षीरवल्ली / पयोऽस्त्यस्याः पयस्विनी / ऋक्षान् गन्धयति–अर्दयति ऋक्ष15 गन्धा / इक्षोरिव गन्धोऽस्याः इक्षुगन्धा माधुर्यात् / इक्षोल्लीव इक्षुवल्ली / क्षीरप्रधाना विदारी क्षीरविदारी, स्वार्थिके के क्षीरविदारिका / आह च-- अन्या क्षीरविदारी स्याद् ऋक्षगन्धेक्षुवल्ल्यपि / क्षीरकन्दा क्षीरयुक्ता क्षीरवल्ली पयस्विनी // . ] इति / 20 क्षीरविदारिकेयम् // 197 // ऐष्णिपर्णी पृथक्पर्णी लागली क्रोष्टुपुच्छिका / शृगालविन्ना कलशिधृतिला धावनी गुहा / / 198 // सिंहपुच्छी चित्रपर्ण्यहिपर्णी तिलपर्ण्यपि / / पृष्णिरिव पर्णान्यस्याः पृष्णिपणी सूक्ष्मपर्णा वा, यदाह —"पृष्णि(श्निः)रल्प 35 तनौ” [अमर० का० 2 वर्ग 6 श्लो० 48 ], तस्याम् / पृथक् पर्णान्यस्याः 1 ऋष्यग' नि० // 2 पृश्निपी नि० / हैमोणादौ 'पृष्णि'शब्दः स्वीकृतोऽस्ति / पाणिन्युणादौ अमरादौ च 'पृश्नि'शब्दः स्वीकृतोऽस्ति //
SR No.032753
Book TitleNighantu Shesh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunyavijay
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1968
Total Pages414
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size26 MB
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