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महावीर की साधना का रहस्य
शरीर, तेजस शरीर और कार्मण शरीर को भेदकर चैतन्य की गहराई में जाने का प्रयत्न किया है वे स्थितात्मा होते हैं। दूसरे प्रकार के मुनि वादी कहलाते हैं । तीसरे प्रकार के मुनि विद्यामंत्र विशारद होते हैं।
भगवान् महावीर के समय में प्रचलित ध्यान की धारा स्थितात्मा होने की दिशा में प्रवाहित थी। फलस्वरूप सैकड़ों-सैकड़ों मुनि केवली, अवधिज्ञानी, मनःपर्यवज्ञानी और विशिष्ट लब्धिधर बने । भगवान् महावीर के उत्तरकाल में दूसरे आचार्य जम्बू के बाद कोई केवली नहीं हुआ। क्रमशः अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान की परंपरा भी विच्छिन्न हो गई । पूर्वो का ज्ञान भी विच्छिन्न हो गया । इस विच्छेद के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि जैसे-जैसे स्थितात्मा या आत्मस्थता क्षीण होती गई वैसे-वैसे आन्तरिक ज्ञान का विकास अवरुद्ध होता चला गया। वीर निर्वाण की दूसरी शताब्दी के बाद बौद्ध, नैयायिक, वैशेषिक आदि दर्शनों का प्रभाव बढ़ा । एक दर्शन दूसरे दर्शन के खंडन में लगा, तब वाद और मंत्र की विशेष अपेक्षा प्रतीत हुई । इस अपेक्षा ने वाद को अधिक मूल्य दिया। जैन परंपरा में भी 'वादिवेताल' और 'वादिकेशरी' जैसी उपाधियां प्रचलित हुईं । 'वादनिपुण व्यक्ति ही जैन शासन की रक्षा कर सकता है'—यह विश्वास दृढ़ हो गया। 'जिसे अधिक मूल्य मिलता है उसका विकास अधिक होता है।' इस नियम के अनुसार स्थितात्मा मुनियों का स्थान वादी मुनि लेने लगे। 'प्रमेयकमलमार्तण्ड', 'प्रमाणनयतत्व' आदि ग्रन्थों में वाद का पूरा प्रकरण उपलब्ध होता है । वादि, प्रतिवादि, सभ्य और सभापति की व्यवस्था मिलती है । नैयायिकसम्मत वाद पद्धति का जैन आचार्यों ने परिमार्जन किया पर वाद आखिर वाद है। उसका सम्बन्ध बुद्धि से है। आत्मानुभूति का मार्ग उससे भिन्न है। वाद के साथ जय-पराजय की व्यवस्था जुड़ी हुई है । इसलिए प्रतिवाद को परास्त करने की दृष्टि से मंत्र का प्रयोग भी उसके साथ चलता था। जैन आचार्यों ने मंत्रविद्या के प्रयोग में बहुत सावधानी बरती। अहिंसा को दृष्टि से ओझल नहीं किया । फिर भी आत्मानुभूति के मार्ग में वे प्रयोग बाधक बने ।
तपस्या की आराधना के द्वारा सहजरूप में लब्धियां प्राप्त होती थीं, उससे अध्यात्म को क्षीण होने का मौका नहीं मिलता था। किन्तु वाद और मन्त्र के प्रयोग ने क्रमशः अध्यात्म भावना को गौण बना दिया। निश्चय नय की बात गौण तथा व्यवहार या शक्ति-अर्जन की बात मुख्य हो गई । वह शक्ति मस्तिष्कीय शक्ति का चमत्कार है। मंत्रशक्ति तैजस शरीर की शक्ति का