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________________ इन विगत चार-पांच शताब्दियों में हमारी साधना-पद्धति पर भक्ति मार्ग का प्रभाव अधिक परिलक्षित होता है । इसके उदाहरण के रूप में आनन्दघनजी को प्रस्तुत किया जा सकता है । वे योगी थे। उन्होंने अनेक स्तवन लिखे । उन्हें देखकर जैन परम्परा के अभ्यासी को आश्चर्य होता है । आनन्दघनजी ने भगवान् की प्रियतम के रूप में उपासना की है। यह जैन साधनापद्धति में एक नया उन्मेष है। वे भक्तिमार्गी वैष्णव धारा से प्रभावित हुए हैं । आचार्य कुन्दकुन्द ने आत्मा के साथ अभेद स्थापित करने की साधनापद्धति प्रस्तुत की थी। वह जैन साधना-पद्धति का मौलिक स्वरूप है । आनन्दघनजी ने भेद-प्रणिधान की साधना-पद्धति को महत्त्व देकर भक्तिमार्ग को विकसित किया। भक्तिमार्ग के बीज आचार्य कुन्दकुन्द के साहित्य में भी मिलते हैं। किन्तु उसका पल्लवित रूप विगत चार-पांच शताब्दियों में प्राप्त होता है। दूसरे योगी चिदानन्दजी शैव साधना से प्रभावित थे। उन्होंने स्वरोदय का लम्बा वर्णन किया है । स्वरोदय और पवन-विजय उनकी साधना के मुख्य तत्त्व रहे हैं। जैन साधना-पद्धति में आने वाले नए उन्मेषों को लक्ष्य में रखकर कुछ आचार्यों और साधकों के नामों की चर्चा मैंने की है। इसका यह अर्थ नहीं है कि उल्लिखित शताब्दियों में अध्यात्मयोगी साधकों का अभाव रहा। समयसमय पर अनेक अध्यात्मयोगी साधक हुए हैं। उन्होंने अध्यात्म की विशिष्ट साधना को है । जैन शासन की सभी परम्पराओं में ऐसे अनेक व्यक्तित्व प्राप्त होते हैं । गृहस्थ साधकों में श्रीमद् राजचन्द्र जैसे महान् साधक हुए हैं। उनकी साधना के अनुभव आज भी अध्यात्म-चेतना के जागरण में महान् . प्रेरणा देते हैं। अब मैं उक्त ऐतिहासिक विहंगावलोकन पर पर्यालोचन की दृष्टि से विचार करना चाहता हूं । आगम साहित्य में अनेक प्रकार के मुनियों का वर्णन 'मिलता है। उनमें एक प्रकार के मुनि स्थितात्मा कहलाते हैं। जिन्होंने स्थूल
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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