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________________ २८६ महावीर की साधना का रहस्य में विस्तार से कुछ नहीं कहा जा सकता है । जो कुछ संक्षेप में कहा जा सकता है वह यह है-महाप्राण ध्यान प्राण को सूक्ष्म करने की प्रक्रिया है । शरीर, वचन, मन और श्वास की क्रिया को क्रमशः सूक्ष्म करते चले जाना महाप्राण की साधना-पद्धति है। स्थूलता और सूक्ष्मता के अनेक स्तर हैं । वे क्रमिक अभ्यास से प्राप्त होते हैं। जब दरवाजे को बन्द कर देते हैं तो पशु या आदमी के लिए वह बंद हो गया । क्या उसमें सर्दी नहीं आती ? उसके लिए वह दरवाजा खुला ही है । क्योंकि वे सूक्ष्म हैं। स्थूल और सूक्ष्म के अवरोध अलग-अलग होते हैं । सर्दी और गर्मी के परमाणुओं से भी मन और श्वास के परमाणु अधिक सूक्ष्म हैं । स्थूलता और सूक्ष्मता के अनेक स्तरों को पार करते-करते चरम कोटि की सूक्ष्मता में प्रवेश करना महाप्राण ध्यान का लक्ष्य है। महाप्राण ध्यान करनेवाला बाहर से एक प्रकार की गहरी मूर्छा या अचेतनता की स्थिति में रहता है, और वह लम्बे काल तक ऐसे रहता है । लम्बे समय तक इस अवस्था में रहने के कारण उसकी गुप्त शक्तियां जागृत हो जाती हैं।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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