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________________ दर्शन समाधि २५३. इस बात का उसे संतोष नहीं है उसे असंतोष इस बात का है कि वह मुख्यमन्त्री नहीं है। मुख्यमन्त्री बन गया, इस बात का उसे संतोष नहीं है, उसे असंतोष इस बात का है कि वह प्रधानमन्त्री नहीं बना । जो है उसका असंतोष नहीं होता । आदमी हमेशा अभाव को देखता है, अभाव को खोजता है । मेरे पास यह है, परन्तु यह नहीं है। मेरे पास वह है परन्तु वह नहीं है। यही असंतोष का मूल कारण है । यही दर्शन का मूल दोष है । साधक का काम यह है कि वह जो नहीं है, उसे न देखे, जो है उसे देखे । इतना-सा अन्तर है–साधक में और असाधक में, साधना में और असाधना में, ध्यान करने में और ध्यान न करने में। इतना-सा ही अन्तर है। जो अभाव को देखता है वह न साधना करता है, न ध्यान करता है, न समाधि करता है, और न धर्म की दृष्टि से देखता है। वह हमेशा बाहर को ही देखता है, सामने वाले को ही देखता है। जिसे देखना आ गया, जिसे साधना की दृष्टि प्राप्त हो गई, वह 'ह' को देखेगा, 'नहीं है' को नहीं देखेगा। अभाव को नहीं देखेगा, भाव को देखेगा । अपने जीवन में भावात्मक दृष्टि को प्रकट करना, भावात्मक दृष्टि का उदय करना और अभावात्मक दृष्टि को समाप्त करना—यह है हमारा दर्शन । यह है दर्शन की समाधि । जिस व्यक्ति को यह दृष्टि प्राप्त हो जाती है, उसे कभी असंतोष नहीं होता। फिर वह अपने अस्तित्व को देखने लग जाता है, जो पास है उसे देखने लग जाता है । अब उसे कोई कठिनाई नहीं होती। वह कठिनाइयों का पार पा जाता है । किन्तु जब तक 'यह नहीं है, वह नहीं है' की दृष्टि समाप्त नहीं होती, तब तक कठिनाइयां और असमाधियां आती रहती हैं। उनका कभी पार नहीं पाया जा सकता। इसलिए दर्शन की समाधि की प्राप्ति के लिए या समग्र साधना की दृष्टि से यह बहुत ही आवश्यक है कि हम अपने अस्तित्व को देखें, 'है' को देखें। यह दृष्टि प्राप्त होते ही अभाव की, असंतोष की दृष्टि समाप्त हो जाएगी और साधना का एक बहुत बड़ा रहस्य हमारे हाथ में आ जाएगा । उस स्थिति में हम हजारों असंतोषों के बीच पूर्ण संतोष और पूर्ण समाधि का जीवन जी सकेंगे। • वर्तमान की साधना में भूत और भविष्य का प्रवाह समाप्त हो जाता है। 'है' की न तो स्मृति रहती है और न कल्पना। इस दृष्टि से साधना शब्द समाप्त हो जाता है। क्योंकि साधना करते हैं कल्पना द्वारा, 'है' से हटकर क्या बनना है ? होना क्या है ? के लिए तो बनने में साधना माती है । तब
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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