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________________ २५४ महावीर की साधना का रहस्य कहां आती है 'है' को साधना? आप क्या कहते हैं ? __ सीधा-सा उत्तर है इसका। साधना के लिए कुछ नहीं बनना है । बनने के लिए साधना है। बनने के लिए तो पहले आपने कर लिया-यह बनना है । अब बनने के लिए जब साधना प्रारम्भ होगी फिर कुछ नहीं बनना है । साधना में तो खाली होना है। खाली होंगे तब ही कुछ बनेंगे । यदि बननेबनने की बात दिमाग में सवार रही तो बनने कुछ और चले और बन जाएंगे कुछ और । साधना से असाधना में चले जाएंगे। ___शंकराचार्य का एक वाक्य है-'चित्तस्य एकाग्रता समाधानम्'-चित्त की जब एकाग्रता होती है तब समाधान या समाधि प्राप्त होती है । 'क्या होना है'-यह तो साधना के प्रारम्भ में हम सोचते हैं । जब करने बैठते हैं तब इस बात को निकाल देना होता है और मन को 'है' में लगा देना होता 'है' में मन लगते ही 'होना है' वह स्वतः हो जाएगा । साधना शब्द को भी आप समाप्त कर दें। उस शब्द में ही जुड़े रहें तो साधना की जगह कुछ और आ जाएगा।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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