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________________ २५२ महावीर की साधना का रहस्य जहां स्थूलता का भेद समाप्त होकर अभेद की स्थिति आ जाती है वहां साधना परिपक्व हो जाती है । दार्शनिक दृष्टि से जो आनेवाली उलझनें या असमाधियां हैं, उनका निरसन तीन दृष्टियों से किया जा सकता है १. अभेद की दृष्टि-अद्वैत या वेदान्त की दृष्टि । २. भेद की दृष्टि-नैयायिक और वैशेषिक की दृष्टि । ३. ऋजुसूत्र की दृष्टि–बौद्ध दर्शन की दृष्टि इन तीनों दृष्टियों का सापेक्ष प्रयोग कर हम दर्शन की समस्याओं को सुलझाएं तो हमें दर्शन की समाधि प्राप्त होगी और समाधि तथा साधन के क्षेत्र में आने वाला पहला विघ्न समाप्त हो जाएगा। ____ समाधि की दूसरी सबसे बड़ी बाधा है-असंतोष। आज कोई भी ऐसा क्षेत्र नहीं है जहां असंतोष न हो। चाहे धनिकों का क्षेत्र हो या गरीबों का, चाहे शासकों का क्षेत्र हो या शासितों का। सर्वत्र असंतोष ही असंतोष है। क्या साधना के द्वारा इसे मिटाया जा सकता हैं ? हां, मिटाया जा सकता है। साधना की उपलब्धि हमारे वर्तमान की समस्या के समाधान में होनी चाहिए। इसी व्यापक संदर्भ में हमने समाधि की चर्चा की है। कुछेक क्षण हम ध्यान में बैठे या समाधि में रहें तब तक हमें समाधान मिले, शांति मिले और जीवन के व्यवहार के क्षेत्र में उतरते ही असमाधान मिले, अशांति उभरे, ऐसी स्थिति में मैं मानता हूं कि ऐसी साधना का कोई मूल्य नहीं हो सकता। आज इतने व्यस्त जीवन में इतना समय नहीं बिताया जा सकता, उस क्षणिक समाधान के लिए, शांति के लिए। आज किसी के पास इतना समय भी नहीं है । साधना का परिणाम वह आना चाहिए कि ध्यान या साधना में रहे, केवल उस समय तक के लिए ही नहीं, किन्तु दिन-रात साधक के मन में असमाधि या असंतोष पैदा हो ही नहीं। मन का निर्माण ही ऐसा हो जाए तो साधना का विशेष अर्थ हो सकता है, अन्यथा नहीं। इसके लिए आने वाली जो उलझनें हैं, उन पर भी दर्शन समाधि के अन्तराल में विचार कर लेना चाहिए। पहली उलझन है-असंतोष की। असंतोष किस बात का है ? जो पास में है उसका या जो पास में नहीं है उसका ? असंतोष इस बात से उभरता है कि 'वह हमारे पास नहीं है ।' यही असंतोष का मुख्य कारण है । हम यह नहीं देखते कि यह हमारे पास है। एक करोड़पति है। उसके पास करोड़ की संपत्ति है । करोड़ की संपत्ति है, उसका उसे कोई संतोष नहीं । उसका असंतोष यह है कि उसके पास पांच करोड़ की संपत्ति नहीं है । मंत्री बन गया
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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