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________________ दर्शन समाधि २५१ होता । सर्वथा अविचार रहता है, अविचार की अनुभूति होते ही मैत्री का, अहिंसा का समता का हमारे जीवन में निर्बाध प्रवेश हो जाता है । एक आदमी भैंसे को पीट रहा था । तुकाराम ने कहा- 'तुम मुझे पीट रहे हो ।' उसने कहा - 'महाराज ! आपको नहीं, भैंसे को पीट रहा हूं ।' तुकाराम बोले-नहीं, एक-एक कोड़ा जो भैंसे की पीठ पर पड़ रहा है, उसका मेरी पीठ पर प्रहार हो रहा है । इसीलिए तो कह रहा हूं कि तुम भैंसे को नहीं, मुझे पीट रहे हो ।' यह अभेदानुभूति है, अभेद का अनुभव है । तुकाराम ने इतना अभेद साध लिया कि भैंसे और स्वयं में कोई अन्तर नहीं रहा । भैंसे की पिटाई ने स्वयं की पिटाई का तीव्र अनुभव करा डाला । इतनी एकात्मता उसके साथ जुड़ गयी । कबीर का पुत्र कमाल घास काटने जंगल गया । सामने अथाह घास है । कमाल वहां खड़ा है और एकटक उसे निहार रहा है । मध्याह्न हुआ । दिन ढला । सांझ हो गई । कमाल खड़ा ही रहा और देखता रहा घास को । कबीर आया । पुत्र को इस प्रकार खड़े देखकर बोला- 'खड़ा खड़ा क्या देख रहा है ? सांझ हो चली है । घास काट और घर चल ।' कमाल का ध्यान टूटा । वह बोला- ' किसे काटूं ? कैसे काटूं ? जो प्राणधारा मेरे भीतर प्रवाहित हो रही है वही प्राणधारा इस घास में प्रवाहित हो रही है । इसें कैसे काटूं ? नहीं काट सकता । क्या मैं अपने ही हाथों अपना छेदन - भेदन करूं ? यह संभव नहीं है । यह सर्वथा असंभव है ।' यह अभेदानुभूति है, एकात्मता का अनुभव है । जब यह अभेदानुभूति साक्षात् हो जाती है तब क्या साधना शेष रह जाती है ? कुछ भी नहीं । साधना वहां शेष रहती है जहां भेद का अनुभव होता है। जहां अभिन्नता सर्व जाती है वहां कोई भिन्न दिखाई नहीं देता । आचार्य सिद्धसेन उज्जैन के एक मंदिर में सो रहे थे । मूर्ति की ओर पैर थे । राजा तक शिकायत पहुंची। राजा ने आदेश दिया कि मुनि को मंदिर से हटा दिया जाए । राजपुरुष आए । मुनि से निवेदन किया । पर वे वहां से हटे नहीं । राजपुरुषों ने उन पर कोड़े बरसाए । मुनि हंसते रहे । उन पर कोड़े का एक भी प्रहार नहीं हो रहा था । वह प्रहार हो रहा था अन्त: पुर की रानियों पर । रानियों की पीठें छिल गईं, लहूलुहान हो गईं । मुनि ने इतना अभेद साध लिया था कि कोड़ा पड़ रहा है उनकी पीठ पर और मार लग रही है अन्तःपुर की महारानियों की पीठ पर ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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