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________________ दर्शन समाधि सचमुच मैं उल्टा चला हूं और कभी-कभी उल्टा चलना भी जरूरी होता है । सबसे पहले दर्शन समाधि की चर्चा होनी चाहिए थी । किन्तु ज्ञान समाधि, चारित्र समाधि, तप समाधि, सामायिक समाधि – इन सबकी चर्चा • होने के बाद दर्शन समाधि की चर्चा हो रही है । यह विषय व्यवस्थापन के 'क्रम में पहला रहेगा, किन्तु चर्चा के क्रम में बाद में आएगा । इसका भी कारण है । यह अन्त में इसलिए जरूरी है कि हमने जितनी चर्चा की है, जितने आगे आए हैं, अन्त में यह मानकर चलें कि 'वितिगिच्छा समावण्णेणं 'अप्पाणं नो लहइ समाही - जो संदेहशील है वह समाधि नहीं पा सकता । यह उपसंहार है सारी चर्चा का । महावीर ने सुन्दर बात कही है कि जिसके मन में विचिकित्सा है उसे कभी समाधि नहीं मिल सकती । उसे न ज्ञान की समाधि प्राप्त होती है, न चारित्र की समाधि, न तप की समाधि और न दूसरी समाधि । समाधि उसे ही मिलती है जिसके मन में कोई विचिकित्सा नहीं है, संशय नहीं है, संदेह नहीं है और अपने लक्ष्य के प्रति, अपनी पद्धति - प्रति बिलकुल असंदिग्ध है । एक भारतीय युवक अमेरिका गया । वह अपने मित्र के ऑफिस में बैठा था। उसका मित्र बार-बार अपनी पत्नी को फोन कर रहा था। आधे-आधे 'घंटे में फोन पर पत्नी से बात करते देख, उसने पूछा- 'आपका तो पत्नी पर बहुत प्रेम है, फिर बार-बार फोन किसलिए करते हैं ?' वह बोला - 'सच बताऊं, प्रेम कुछ भी नहीं है । मुझे यह भरोसा ही नहीं है कि वह घर पर है मुझे छोड़कर किसी दूसरे के साथ चली गयी है । इसलिए समय के थोड़ेथोड़ े अन्तर से यह तसल्ली कर लेता हूं कि स्थिति क्या है ? ' क्या ऐसा व्यक्ति, जिसे यह भरोसा नहीं है कि घंटा दो घंटा बाद उसकी पत्नी रहेगी या नहीं, कभी समाधि पा सकता है ? कभी नहीं । जहां भरोसा नहीं, विश्वास नहीं, उसे कभी समाधि नहीं मिल सकती । समाधि के लिए विश्वास का होना बहुत जरूरी है । आस्था का होना बहुत जरूरी है । व्यक्ति ध्यान प्रारंभ करता है, पर सोचता रहता है कि सफल होऊंगा या नहीं, वह पहले कदम पर ही स्खलित हो जाता है । वह लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाता ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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