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तप समाधि
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और व्यवहार नय हमेशा व्यवहार या तीर्थ के साथ जुड़ा हुआ होता है । संगठन में एक व्यक्ति जुड़ता है और वह उसकी मर्यादा को स्वीकार करता है । ये सारी व्यवहार की बातें हैं। इसके साथ हम मानसिक परिवर्तन या आन्तरिक तप की स्थिति नहीं जोड़ सकते । यदि हम ऐसा करते हैं तो दोनों में उलझन पैदा हो जाती हैं । हाथ जोड़ना, सामने आना, खड़ा होना—यह कोई आन्तरिक तप नहीं है । यह लोकोपचार है । आन्तरिक तप है विनय । उसका अर्थ है-अहं की ग्रंथि का विमोचन । • आपने कहा कि कर्म के विलय के लिए प्रक्रियाएं हैं। यदि हम वेदनीय कर्म की या ज्ञानावरणीय कर्म को दूर करने के लिए उन प्रयोगों को काम में लें तो क्या दिक्कत है?
दिक्कत क्या हो सकती है ? उस ओर ध्यान देने की आवश्यकता है। पद्धतियां नहीं हैं यह नहीं है। प्राचीन ग्रंथों में विभिन्न पद्धतियों के संकेत मिलते हैं। कुछ स्पष्ट निर्देश भी प्राप्त होते हैं। वाठों कर्मों के लिए पूरा का पूरा विवरण मिलता है कि अमुक कर्म के उदय में बमुक मंत्र का बाप और भमुक तप । जप और तप-दोनों साथ-साथ जुड़े हुए मिलते हैं। किन्तु आज वे विस्मृत-से हो गए हैं। कान के प्रवाह से विस्मृति आ गयी है । हम उन पद्धतियों की ओर ध्यान केन्द्रित करें, उन्हें स्मृति में लाएं तो आज उनका प्रयोग किया जा सकता है और लाभ भी उठाया जा सकता है।