SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 259
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४६ महावीर की साधना का रहस्य तपस्या की अनेक विधियों का विधान किया । आज यदि इन पद्धतियों का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाए, पचासों विद्वान् लगें तो अनेक नए तथ्य सामने आ सकते हैं। तपस्या से मोह शरीर क्षीण होता है और तैजस शरीर प्रदीप्त होता है। कबीर ने लिखा है-'बाहर से तो कछुयन दीखे, भीतर जल रही जोत' । आचार्य भिक्षु ने भी यही आशय प्रकट किया है । आगम सूत्रों में मुनि को 'भासछन्न हुतासन' कहा है । तपस्वी मुनि भस्मच्छन्न अग्नि की भांति लगते हैं। वैसी अग्नि जो ऊपर से राख से ढंकी हुई हो और भीतर प्रदीप्त । तपस्वी मुनि में तपः तेज की लक्ष्मी की प्रखरता आ जाती है । उनके मन में इतनी सघन समाधि उत्पन्न होती है कि उनके पास बैठने वाला प्रत्येक व्यक्ति परम शान्ति का अनुभव करने लगता है । यह है तैजस शरीर का विकास । यह है तैजस शरीर की तेजस्विता । यह है प्राण शरीर का विकास । भगवती सूत्र में एक प्रसंग है । भगवान् महावीर साधनाकाल में तपस्या अधिक करते थे । उनका शरीर सूख गया था, क्षीण हो गया था । स्कंधक संन्यासी उनके पास आया। उसने भगवान् को देखा और एकटक निहारता रहा उनको । भगवान् सुन्दर लगे, पुष्ट लगे। उसका कारण बताते हुए वहां लिखा है-अब भगवान् प्रतिदिन भोजन करने लगे हैं, इसलिए शरीर पर चमक आ गयी है । यह चमक भोजन की चमक है। स्थूल शरीर को यदि आहार न मिले तो वह क्षीण हो जाता है। चाहे वह शरीर भगवान् का हो या किसी अन्य व्यक्ति का हो। प्राण-शक्ति का तेज हो जाना, तेजस्विता का बढ़ जाना, यह तैजस शरीर का विकास है । जिनका तैजस शरीर विकसित होता है, वे जो बात कहते है, सामने वाला व्यक्ति उसे टाल नहीं सकता। यह है उनकी तेजस्विता । यह तैजस शरीर का काम है । यह सच है कि अन्त में उसे भी क्षीण करना होता है । यह शरीर कर्म शरीर या स्थूल शरीर में बाधक नहीं बनता । यह तो विद्युत् शरीर है, उपकरण मात्र है सक्रियता को योग देने वाला है। • जो अभिग्रहधारी होता है उसकी अपनी निश्चित मर्यादाएं हैं। वह किसी का विनय नहीं करता, हाथ नहीं जोड़गा, आदि-आदि । क्या यह भी तप है ? यह सब संगठन की व्यवस्था है। मेरा किसके साथ में संबंध हो, मैं किसकी सेवा करूं, किसकी न करूं-ये सारी बातें व्यवहार के या तीर्थ के स्तर पर चलती हैं। दो बातें हैं । निश्चय नय की बात है सत्य की प्रविधा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy