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________________ जागरिका उपासिका जयन्ती ने भगवान् महावीर से पूछा, "भगवन् ! सोना अच्छा है या जागना ?' भगवान् ने कहा—'कुछ जीवों का सोना अच्छा है और कुछ जीवों का जागना अच्छा है । भगवान् ने अनेकान्त की भाषा में उत्तर दिया । सोना भी अच्छा है और जागना भी अच्छा है। फिर पूछा-'भंते ! यह कैसे ?' भगवान् ने कहा-जो मनुष्य अधर्मपरायण है, जागकर निन्दा करते हैं, ईर्ष्या करते हैं, चुगली करते हैं, बुराई करते हैं- दूसरों को आघात पहुंचाते हैं, ऐसे मनुष्यों को सोना अच्छा है । जो मनुष्य भद्र हैं, दूसरों की बुराई नहीं करते, अधर्म का आचरण नहीं करते, असद् व्यवहार नहीं करते, दूसरों को पीड़ा नहीं पहुंचाते, उन मनुष्यों का जागना अच्छा है । इसलिए सोना भी अच्छा है और जागना भी अच्छा है।' प्रश्न हो सकता है कि सोना अच्छा कैसे हो सकता है ? जागना अच्छा है, यह तो स्वाभाविक बात है । किन्तु सोना अच्छा कैसे हो सकता है ? किन्तु यह उत्तर एक दृष्टि से दिया गया है हमारी शारीरिक स्थिति को सामने रखकर दिया गया है । जो नींद हमारे शरीर पर और हमारी स्थूल चेतना पर प्रभाव डालती है, उस नींद को ध्यान में रखकर यह उत्तर दिया गया है। किन्तु इसका एक दूसरा पहलू और है। उसके अनुसार सोना अच्छा नहीं हो सकता, जागना अच्छा हो सकता है। हमारी चेतना के तीन स्तर हैं-सुषुप्ति (मूर्छा), जागृति और वीतरागता । मनुष्य सुषुप्ति की अवस्था में रहता है, मूर्छा की अवस्था में रहता है । मूर्छा की अवस्था में वह बेभान रहता है, बेहोश रहता है। उसे बहुत सारे सत्यों का ज्ञान नहीं होता, बोध नहीं होता। चेतना की एक स्थिति आती है जागृति की । जब वह जाग जाता है, मूर्छा टूट जाती है, मूर्छा का भंग हो जाता है, उस स्थिति में उसके चैतन्य की क्रियाएं बदल जाती हैं । उससे अगली अवस्था है वीतरागता की, जहां जागरण का चरम बिन्दु प्राप्त हो जाता है । चेतना की हमारी पहली अवस्था है मूर्छा की अवस्था । भगवान् महावीर ने जिसे मिथ्यात्व कहा था, मिथ्यादष्टि कहा था, यह मूछा
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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