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________________ १२ महावीर की साधना का रहस्य पर्याथ, चाहे चरित्र का पर्याय, चाहे व्यवहार का पर्याय, चाहे आपसी बातचीत करने का पर्याय, चाहे चेतना की गहराई में जाने के पर्याय, चाहे वापस आने का पर्याय, ये सारे के सारे पर्याय हैं, परिणमन हैं तो हम जिस प्रकार की भावना या धारणा मन में लाते हैं, उसी प्रकार हमारी परिणति शुरू हो जाती है | आप अपने मन में एक बीमारी का संकल्प लेकर बैठ जाइए। आप बीमार नहीं हैं, किन्तु बीस दिन बाद आप अनुभव करेंगे कि आप बीमार हो गए हैं, निश्चित हो गए हैं। क्योंकि सारी चेतना की सक्रियता, सारी ऊर्जा उसी दिशा में प्रवाहित हो जाएगी कि आपको बीमार बन जाना होगा । ठीक उसी प्रकार स्वास्थ्य का संकल्प लेकर बैठ जाइए और पूरी तन्मयता के साथ उस बात को दोहराइए, आपमें शक्ति का संचार होना शुरू हो जाएगा । प्रसन्नता और विपन्नता, हर्ष और शोक – ये द्वन्द्व हैं । जिस द्वन्द्व की ओर सारे संकल्प पूरी निष्ठा और सचाई के साथ काम करने लग जाएंगे, उसी प्रकार की आपकी चेतना की परिणति शुरू हो जाएगी । यह है परिणामित्व का सिद्धांत | इसी के आधार पर सारा का सारा परिणमन होता रहता है । बहुत सारे लोग कहते हैं कि अमुक व्यक्ति बहुत बीमार था, चल-फिर नहीं सकता था । आचार्यश्री आए और अब वह चलने लगा है । कहां से ताकत आयी ? उसके मन में एक संकल्प उत्पन्न हुआ और संकल्प उत्पन्न होते ही उसकी M परिणति बदल गई । हमने देखा कि पूज्य कालूगणी की माता छोगांजी बैठ नहीं सकती थीं, काफी वृद्ध थीं । आचार्यश्री आते, या तो बैठ ही नहीं सकती थीं, या छह-छह घंटे बैठी रहतीं । यह इतना आकस्मिक परिवर्तन क्यों आया ? क्या शक्ति का अवतरण हो गया ? शक्ति का अवतरण नहीं हुआ किन्तु यह संकल्प का विकास है । अपने संकल्प के बल पर ऐसा हो जाता है और आप जानते हैं कि जब आदमी में कोई आवेग का अवतरण होता है, संकल्प की दृढ़ता आ जाती है तो शक्ति का भी सहसा संचार हो जाता है । ये सारे पर्याय हमारे हाथ में हैं और हम भिन्न-भिन्न पर्यायों में परिणत होते रहते हैं । एक व्यक्ति का हाथ घुटनों के पास है । उसने बहुत स्पष्ट चित्र खींच लिया कि उसका हाथ आज्ञाचक्र पर है । अब हाथ या स्थूल मन तो वहां समाप्त हो जाता है । चित्र काम करने लग गया और स्थूल मन ने अपनी क्रिया छोड़ दी । इसका मतलब यह हो गया कि हमारा स्थूल मन निष्क्रिय हो गया, बाहरी मूर्च्छा आ गई और अब सारी की सारी प्रेरणा और शक्ति भीतर से आ रही है । I जैसे - जैसे स्पष्ट हुआ, फिर वह सूक्ष्म मन
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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