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________________ साधना का मूल्य : आंतरिक जागरूकता १६१ के प्रयोग के द्वारा उस विचार को भुलाने का प्रयत्न करते हैं जिससे कि वह विचार की प्रसक्ति और संस्कार की प्रसक्ति को छोड़ सके और उसका दिमाग शांत हो सके। इसलिए उसे शून्यता की स्थिति में रखते हैं। किन्तु आपको यह ज्ञात होना चाहिए कि बिजली के द्वारा किया जाने वाला प्रयोग या मादक वस्तु के द्वारा किया जाने वाला प्रयोग उसे तन्द्रा की स्थिति में ले जाएगा, किन्तु उसकी आंतरिक चेतना बनी ही रहेगी। एक व्यक्ति को क्लोरोफार्म सुंघाकर ऑपरेशन किया जा रहा है, उसे आंतरिक स्मृति भी नहीं रहती। बिलकुल चेतना लुप्त हो जाती है। उसमें कोई भान ही नहीं रहता । यह जो बेभान हो जाने की स्थिति है, यह ध्यान की स्थिति नहीं है। आचार्य पूज्यपाद, राजसेन, हरिभद्र, हेमचंद्र आदि ने एक स्वर से इस बात का समर्थन किया कि अभावात्मक ध्यान जैनों को सम्मत्त नहीं है । अभावात्मक यानी शून्यतात्मक । किन्तु भावात्मक शून्यता ही हमें मान्य है । अभावात्मक शून्यता हमें मान्य नहीं है । जिसे अभावात्मक शून्यता प्राप्त होती है वह मूर्छावान् है और मूर्छा का मतलब है मोह । हमें मोह को तोड़ना है। ___ ध्यान की शून्यता का मतलब है-बाहरी शून्यता, वैचारिक शून्यता, विकल्प की शून्यता । अर्थात् चैतन्य की अधिक जागरूकता । हमें करना क्या है ? स्थूल मन को निष्क्रिय बनाना है, अवचेतन मन को सक्रिय बनाना है। जब हमारा स्थूल मन सक्रिय होगा, सूक्ष्म मन निष्क्रिय होगा और जब हमारा स्थूल मन निष्क्रिय हो जाएगा तब हमारा अन्तर्मन सक्रिय हो जाएगा । उसे पूरी शक्ति से काम करने का और अपनी शक्ति को प्रकट करने का मौका मिलेगा। हमारा सारा प्रयत्न यह है कि अन्तर्मन को काम करने का अवसर देना, और वह अवसर तभी दिया जा सकता है जबकि स्थूल मन को हम बन्द कर दें। उसके कार्य को बन्द कर दें। हमें तीसरे विकल्प का प्रयोग करना है । व्यवहार में सुषुप्त यानी हमारी बाहरी इन्द्रियां, बाहरी मन बिलकुल सुप्त रहे और भीतर में चेतना की क्रिया बराबर चालू रहे, चेतना का काम होता रहे। जैन दर्शन का एक सिद्धांत है कि जीव परिणामी है, आत्मा परिणामी है। हमारा परिणमन होता रहता है। हम जब द्रव्य आत्मा, शुद्ध आत्मा या शुद्ध-चेतना रूप में होते हैं, उस समय केवल आत्मा होते हैं, और कुछ नहीं होते, केवल आत्मा । किन्तु और-और पर्याय हमारे चलते हैं, चाहे कषाय का
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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