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________________ आत्मा का साक्षात्कार १८७ • हम ज्ञेय को जान रहे हैं और जिनके द्वारा जान रहे हैं, उसको जानना आत्म-साक्षात्कार है, इसे स्पष्ट कीजिये। एक आदमी गाड़ी में बैठा चला जा रहा है । गाड़ी चल रही है और वह जा रहा है । वह यह सोचे कि मैं गाड़ी से जा रहा हूं तो भी चलता है और यह न सोचे कि मैं गाड़ी से जा रहा हूं तो भी चलता है । सोचे तो भी चलता है और नहीं सोचे तो भी चलता है । क्योंकि गाड़ी चल रही है । हमारा ज्ञान एक प्रकार से गाड़ी है, माध्यम है, साधन है। आंखें खुली हैं। सामने कोई आकृति आयी, हम जान लेते हैं। क्योंकि आंख का काम है, सामने वाले को देख लेना । मैं ज्ञान के द्वारा उसे जान रहा हूं तो भी जान लेता हूं और यह नहीं सोचूं तो भी जान लेता हूं। हम ज्ञेय को जानते हैं, इसीलिए वस्तु का साक्षात्कार करते हैं, आत्मा का साक्षात्कार नहीं करते । जिसके द्वारा देख रहा हूं, वह मेरा ही एक अंग है । आप ज्ञान पर अपने ध्यान को टिकाइए । जैसे ही ध्यान ज्ञान पर टिकता है, ज्ञेय के साथ आने वाली विकृति बन्द हो जाती है । ज्ञेयानुभूति के स्थान पर ज्ञानानुभूति या चैतन्यानुभूति का अभ्यास हो जाए तो ज्ञेय का बोध तो होगा किन्तु ज्ञेय के साथ-साथ, उस नाले के साथ-साथ जो गंदगी आने वाली है, वह सारी मिट जाएगी। पानी जाने के लिए जो नालियां बनाई जाती हैं, उनमें जालियां भी लगा दी जाती हैं । वे जालियां पानी रोकने के लिए नहीं लगाई जातीं अपितु इसलिए लगाई जाती हैं कि केवल पानी जाए, उसके साथ कूड़ा-करकट न जाए । अगर हम जाली नहीं लगाएंगे तो ज्ञेय के साथ कूड़ा-करकट आएगा, उसे कौन रोकेगा ? जब हम साधना की दृष्टि से देखते हैं तो उसके साथ जाली लगा देते हैं कि अब कोरा ज्ञेय आ सकता है, कूड़ा-करकट नहीं आ सकता । यह है हमारी चैतन्यानुभूति और आत्म-साक्षात्कार । हम कहते हैं कि आत्मा का साक्षात्कार हो गया, प्रभु का साक्षात्कार हो गया। फिर कोई विकार नहीं आता । आप आंख मूंद लेते हैं तो विषय का द्वार बन्द हो जाता है; आंख खुलते ही विषय सामने आ जाता है । जब परमात्मा को देख लेते हैं, आत्मा को देख लेते हैं तो फिर न विषय सताता है है और न विकृतियां ही । चैतन्यानुभूति का मतलब है, प्रभु का दर्शन या आत्मा का दर्शन ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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