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________________ महावीर को साधना का रहस्य समाप्त हो जाती हैं, कोई आती ही नहीं । और शक्ति का इतना अनुभव होता है कि बस अब पाने को कुछ भी शेष नहीं। जब मन में कोई विषाद ही नहीं रहता तो कोरा आनन्द ही आनन्द रहता है। जानना, देखना, शक्ति का अनुभव और आनन्द का अनुभव-ये हैं चैतन्य की चार क्रियाएं । अचेतन में ज्ञान नहीं, दर्शन नहीं और आनन्द नहीं, केवल शक्ति है। शक्ति बहुत है । चेतन में अनन्त शक्ति है तो जड़ में भी अनन्त शक्ति है । पर चेतन में शक्ति के अतिरिक्त और भी बहुत कुछ है । इसलिए उसका साक्षात्कार ही सत्य का साक्षात्कार है। • आत्मा शुद्ध चैतन्य है तो आत्मा का काम केवल शुद्ध चैतन्य में रहना ही है तो जानना-देखना भी है ? एक घर में अनेक कमरे हैं, सीढ़ियां हैं, खिड़कियां हैं, पचासों-पचासों भाग मिलकर एक घर बना है । एक पथिक रास्ते से गुजर रहा है। वह देखता है कि यह घर है । दूसरा आदमी भीतर आता है और वह एक-एक खण्ड को बारीकी से देखता है। पथिक को भी घर का बोध होता है और भीतर जाने वाले को भी उसका बोध होता है । बोध दोनों को होता है । किन्तु एक करता है भेद की दृष्टि से और एक करता है अभेद की दृष्टि से । जो भेद की दृष्टि से करता है, उसे सारे खण्ड ज्ञात हो जाते हैं। जो अभेद की दृष्टि से करता है, उसे घर है' इतना-सा बोध होता है। जहां हम भेदचेतना से काम लेते हैं, वहां हमें सारी बातें ज्ञात हो जाती हैं । जब हम देखते हैं तो अभेद चेतना से ही देखते हैं। देखते समय हमारी चेतना भेदात्मक नहीं होती। मैंने किसी को देखा और उसी समय जान लिया कि कोई आदमी है। यह अभेद चेतना है । अब मैं देखंगा कि इसके सिर है, कान है, आंखें हैं और बहुत कुछ है । यह भेदात्मक चेतना है । दर्शन होता है अभेदात्मक चेतना से और ज्ञान होता है भेदात्मक चेतना से । __शुद्ध चेतना होती है, वहां ज्ञेय की बात समाप्त हो जाती है। वहां केवल चैतन्य का अनुभव होता है । हम चैतन्य के द्वारा दूसरी वस्तुओं को जानते हैं, किन्तु चैतन्य को भुला देते हैं । शुद्ध चेतना होती है, वहीं दूसरी वस्तुओं की वात गौण हो जाती है, वहां केवल आत्मानुभूति होती है, अपने अस्तित्व की अनुभूति होती है, ज्ञेय की अनुभूति गौण हो जाती है। इन दोनों बातों को समझे-एक ज्ञेयानुभूति और एक आत्मानुभूति, चैतन्यानुभूति ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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