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________________ आत्मा का साक्षात्कार १८३: परमात्मा के रूप में दत्तचित्त होता है, वह परमात्मा है । यह हमारा भाव - निक्षेप है । एक व्यक्ति परमात्मा का नाम बोलता है । एक व्यक्ति परमात्मा की प्रतिकृति, प्रतिमा या मूर्ति को देखता है । एक व्यक्ति परमात्मा के वृत्त को जानता है, उसकी योग्यता को जानता है और एक व्यक्ति परमात्मा कौन है, परमात्मा क्या तत्त्व है, इस चिंतन में अपने सारे मन को नियोजित कर देता है, तो यह चौथा व्यक्ति सही अर्थ में परमात्मा बन जाता है । जिसका सारा का सारा ज्ञान, सारी की सारी चेतना परमात्मा में उपयुक्त हो गयी, नियोजित हो गयी, वह परमात्मा है । हम आत्मा और परमात्मा की दूरी को समाप्त कर देते हैं, अपनी चेतना के नियोजन के द्वारा । बहुत सारे लोग मानते हैं कि आत्मा एक अवस्था में परमतमा बनता है । कितने ही जन्मों के बाद एक स्थिति आएगी और आत्मा परमात्मा बन जाएगा। यह व्यवहार का दृष्टिकोण है । निश्चय नय का दृष्टिकोण यह है कि जिस क्षण तुम परमात्मा में उपयुक्त होते हो, उसी क्षण परमात्मा बन जाते हो । जो व्यक्ति परमात्मा में उपयुक्त है, वह परमात्मा है । यह बहुत सुन्दर प्रक्रिया है— स्थापना की, अनुभव की, ध्यान की और परिणति की । यह क्रम शुरू होता है स्थापना से और होते-होते परिणति हो जाती है | परिणति का अर्थ है आप परमात्मा बन गए । हम परमात्मा की स्थिति पर विचार करें। पहले हम देखें भेद की दृष्टि से और फिर देखें अभेद की दृष्टि से । जब हम भेद की दृष्टि से विचार करें तो परमात्मा और आत्मा ये दो हमें मान्य होते हैं । एक है आत्मा और दूसरा है परमात्मा । जब हम अभेद की दृष्टि से देखते हैं तो आत्मा और परमात्मा में कोई अन्तर नहीं आता । जो आत्मा है, वह परमात्मा है और जो परमात्मा है, वह आत्मा है । इस स्थिति में कोई अन्तर नहीं आता । यह केवल हमारे दृष्टिकोण का अन्तर है । आत्मा और परमात्मा को हम भेद की दृष्टि से दो मानते हैं. तब प्रश्न होता है कि दो का एकीकरण कैसे किया जाए? हम देखते हैं कि काठ का पट्ट है, काठ के किवाड़ हैं । जब हम भेद दृष्टि से देखते हैं तो पट्ट अलग है, किवाड़ अलग है । किन्तु जब हम वस्तुओं को नहीं देखते, काठ को देखने लगते हैं तो पट्ट भी काठ है, किवाड़ भी काठ है । फिर हमें काठ ही काठ दिखाई पड़ने लग जाता है, वस्तुएं दिखाई नहीं देतीं, भेद दिखाई नहीं देता
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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