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________________ आत्मा का साक्षात्कार १८१ पहला अंग है स्थापना, दूसरा है अनुभव, तीसरा है ध्यान और चौथा है विहार। यदि आप परमात्मा बनना चाहते हैं तो सबसे पहले अपने मन को परमात्मा में स्थापित करें। मन को सब बातों से हटाकर परमात्मा में मन की स्थापना करें। स्थापना करने के बाद अनुभव करें। आपने मन को परमात्मा में लगाया, अब उसमें इतने रस-विभोर हो जाएं, इतने तन्मय हो जाएं, मन को इस प्रकार बदल दें कि आपको परमात्मा का अनुभव होने लग जाए । जैसे कोई आदमी आम खा रहा है और आम खाते समय उसको आम के रस का अनुभव होता है । उसी प्रकार मन को परमात्मा में लगाया और उसका अनुभव करना शुरू कर दिया, यह होगी हमारी दूसरी क्रिया । ____ आपने अनुभव किया किन्तु उस अनुभव को स्थायी बनाना है । वह स्थायी कब बनेगा ? जब तक विकल्पात्मक स्थिति रहेगी तब तक वह स्थायी नहीं बन सकता । विकल्प आते ही क्रिया बदल जाती है । हम बहुत बार संकल्प करते हैं कि यह काम होना चाहिए, यह नहीं चाहिए । यह बुरा काम है, मैं नहीं करूंगा । यह अच्छा काम है, मैं करूंगा। हम संकल्प करते हैं । किन्तु बहुत बार क्रिया-काल में संकल्प से हट जाते हैं। जब करने का अवसर आता है, उस समय नहीं करने का काम कर लिया जाता है और करने की बात हाथ से छूट जाती है । यह स्थिति कब बनती है ? हमारा विकल्प तो है, हमारा संकल्प तो है, हम अनुभव तो कर रहे हैं किन्तु संकल्प के लिए कोई पुष्ट आधार नहीं बना रहे हैं और आधार के बिना उस स्थिति का निर्माण नहीं हो सकता । तो उसके लिए चाहिए कि हमारे मन में विकल्प हुआ, वितर्क हुआ, वह पुष्ट कैसे बने ? और जो हमने सोचा, उससे भिन्न मार्ग कभी न आए । इसका उपाय है ध्यान । यहां ध्यान से मतलब है निर्विकल्प समाधि, शुद्ध उपयोग । आप परमात्मा में शुद्ध चैतन्य का अनुभव करने लग जाते हैं । इसका अर्थ है कि आप शुद्ध चैतन्य की स्थिति में पहुंच जाते हैं, संवर की स्थिति में चले जाते हैं । संवर का बल मिला और आपके संकल्प की पुष्टि हो जाती है। शास्त्रीय भाषा में संकल्प या अनुभव निर्जरा है और निर्विकल्प समाधि या शुद्ध उपयोग संवर है। संवर की स्थिति आते ही नए संस्कारों का निर्माण समाप्त हो जाता है, रुक जाता है। उनका रुक जाना और साथ-साथ पुराने संस्कारों की निर्जरा का होना, यह दुहरी पुष्टि है।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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