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________________ १८० महावीर की साधना का रहस्य हो गया। हवा पहुंच रही है और कोई भीतर भी बैठ सकता है। कमरा कमरा है । पहले भी कमरा था अब भी कमरा है। पहले दरवाजा बन्द था। और अब दरवाजा खुल गया। बन्द कमरा और खुला कमरा–कमरे दो हो गए। पहले था बन्द कमरा और अब हो गया खुला कमरा । बन्द कमरा आत्मा है और खुला कमरा परमात्मा है। कमरे दो नहीं हैं। आत्मा और परमात्मा दो नहीं हैं। एक ही तत्त्व की दो अवस्थाएं हैं। छोटा-सा बीज था। शक्ति उसमें समाई हुई थी। बीज बोया, फूटा, अंकुरित हुआ, वट वृक्ष बन गया। अब बीज और बरगद दो नहीं हैं । एक ही हैं । बीज अपनी शक्ति को छोटे-से कलेवर में समेटे हुए था ; शक्ति का स्रोत फूटा और एक बड़ा बरगद बन गया। शक्ति का स्रोत जब बन्द होता है, तब आत्मा आत्मा है । स्रोत फूट गया, खुल गया, वह परमात्मा बन गया । जिस उपादान में परमात्मा न हो, वह कभी परमात्मा नहीं बन सकता। दरवाजा बन्द है, वह ठीक नहीं है। उसमें अंधकार है और गर्मी है। उसे खोलना चाहिए। जो बीज है, वह फूटना चाहता है । हमें केवल यही समझना है कि दरवाजे को खोलने का रास्ता क्या है ? खोलने की प्रक्रिया क्या है ? हम गए, किवाड़ खटखटाया और दरवाजा खुल गया। बीज को मिट्टी में बोया, थोड़ा-सा पानी डाला, सींचा और अंकुरित हो गया । वह हाथ कौन-सा है, जो दरवाजे को खोल सके ? वह पानी कौन-सा है कि जिसका सिंचन पाकर बीज अंकुरित हो उठे। केवल हमें यही समझना है। आत्मा और परमात्मा को समझना नहीं है ; क्योंकि ये दो भिन्न नहीं हैं। जो आत्मा को जानता है, वह परमात्मा को भी जानता है। जो परमात्मा को जानता है, वह आत्मा को भी जानता है । आत्मा को जाने बिना परमात्मा को नहीं जाना जा सकता और परमात्मा को जाने बिना आत्मा को नहीं जाना जा सकता। इन्हें जानने-समझने में कोई दूरी नहीं है । दूरी है कि उस दरवाजे को कैसे खोलें ? और उस बीज को कैसे अंकुरित करें ? हमारे पास शक्ति है। हम उस शक्ति का कैसे उपयोग करें ? वह परमात्मा बन चुका जो दरवाजे को खोल सका। जो बीज पेड़ बन चुका, उसे हमें सामने रखना है। योग की भाषा में यह समापत्ति है। जो बनना चाहते हो, उसके साथ तन्मय हो जाओ। यदि परमात्मा बनना है तो हम सारी चित्त की वृत्ति को परमात्मा में लीन कर दें, उसके साथ तन्मय हो जाएं। इस साधना की एक चतुरंग प्रक्रिया है । उसका
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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