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________________ २७४ महावीर की साधना का रहस्य सम्बासु वट्टमाणा, मुणओ देसकालचेटासु । वरकेवलाइलाम, पता बहुसो समियपावा ॥ तो देसकाल चेठानियमो झाणस्स नस्थि समयंमि । जोगाण समाहाणं जह होइ तहा (१) यइयव्वं ॥ --ध्यानशतक ३६-४१ -जिस देहावस्था (आसन) का अभ्यास हो चुका है और जो ध्यान में बाधा डालने वाली नहीं है, उसी में अवस्थित होकर ध्यान करे। चाहे फिर वह स्थित-खड़े होकर कायोत्सर्ग आदि करे, निषण्ण-बैठकर वीरासन आदि में अथवा निपन्न-सोकर दण्डायतिक आदि आसन में ध्यान करे । सभी देश, काल और आसनों में प्रवृत्त उपशान्त दोष वाले अनेक मुनियों ने (ध्यान के द्वारा) केवलज्ञान आदि के ज्ञानों की प्राप्ति की है। ___ आगमों में ध्यान के लिए देश, काल और आसन का कोई नियम नहीं है। जैसे योगों का समाधान हो वैसे ही प्रयत्न करना चाहिए। ४. आलंबन आलंबणाहवायणपुच्छण परियट्टणाणचिताओ। सामाइयाइएयाई सधम्मावस्सयाई च ॥ विसमम्मि समारोहह बढदग्वालंबणो जहा पुरिसो सुताइयकयालंबो तह झाणवरं समावहइ ॥ ध्यानशतक, ४२-४३ धर्म्यध्यान के ये आलंबन हैं १. वाचना, २. पृच्छना, ३. परिवर्तना, ४. अनुचिन्ता। ये चारों श्रुत-धर्मानुगामी आलंबन हैं। सामायिक आदि आवश्यक करणीय कार्य चारित्र-धर्मानुगामी आलम्बन हैं । ___जैसे मजबूत रस्सी का आलम्बन लेकर मनुष्य विषमस्थान में भी ऊंचा चढ़ जाता है वैसे ही सूत्र (वाचना आदि) का आलंबन लेकर व्यक्ति धर्म्यध्यान में आरूढ़ हो जाता है । पहले मानसिक ध्यान; फिर कायिक ध्यान, पहले कायिक ध्यान, फिर मानसिक ध्यान, जैसे सुविधा हो वैसे किया जाए। ध्येय-रागद्वेषरहितता ध्याता-अप्रमत्त ।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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